अपमानित मन
अपमानित तन -मन
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कुछ भी न कहना ,
बस चुप साधे रहना।
अत्याचार सारे सहकर,
संयम बाँधे रहना।
बहुसंख्यक होकर भी
तुम आज लाचार हो।
सेकुलर होने के कारण
हुआ तुम्हारा संहार है।
ममता अनिता सविता प्रिया
क्यों चुपचाप देख रही हैं।
संवेदनशील कलम तुम्हारी
शब्दों को क्या तौल रही हैं।
साहिब ने फिर किया ऐलान
माफ नही हम उनको करेंगे।
सोचों तन उन आघातों की
वेदना को हम कैसे सहेंगे ।
साहिब तुम भी क्या कर लोगे
कश्मीर सा उपचारोगे ।
कबत क बंदूँको के बल पर
इन कुतिस्त मन को सुधारोगे।
केरल में पड़ताड़ित माँ बहनें
बंगाल में वह अपमान सहें।
जबतक मणिपूर की सुध लोगे
तब तक बिहार झारखंड खोदेंगे।
छल से सेकुलर नाम सजाकर
वह हमारा धर्म बदल रहें हैं।
कभी संयुक्ता ,तो कभी श्रद्धा
कों यह नाग निगल रहें हैं।
यह सिर्फ नारी उत्पीड़न नही
धर्म नही स्वीकारनें की सजा है।
निरवस्त्र घुमाना ,और नोंचना
उनकी सदियों की तो प्रथा है।
जन- जन की अब कलम जागे
और रोष क्रोध गुबार फूटे।
संविधान के सारे उपबंध अब
लगते हमको यहाँ पे झूठे।
करों कोई अब नया उपचार
बहुसंख्यक का भी दर्द बाँटें।
उन्मादी धार्मिक यह कीड़े
संविधान कानूनो को चाटें ।
दु:खी अपमानित मन😪