अपभ्रंश-अवहट्ट से,
अपभ्रंश-अवहट्ट से,
पायी ऊर्जा आँच
हिन्दी सत्रह बोलियाँ,
उपभाषायें पाँच
—महावीर उत्तरांचली
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*हिन्दी की पाँच विभाषाएँ (उपभाषाएँ) हैं—ब्रजभाषा, अवधी, खड़ी बोली, भोजपुरी व मैथिली। उपभाषाएँ की परिभाषा यही है कि अगर किसी भी बोली में साहित्य रचनाएँ उपलब्ध होने लगें और वह क्षेत्र विकसित होता जाय, तो उस स्थिति में वह क्षेत्रीय बोली न होकर उपभाषा बन जाती है।
**सत्रह बोलियाँ जिसे की शौरसेनी भी कहा जाता है। इसी के द्वारा वर्तमान हिन्दी का स्वरूप विकसित हुआ है। जैसे कि राजस्थानी से मारवाड़ी, मालवी, मेवाती, जयपुरी आदि, पहाड़ी हिंदी से कुमाऊँनी, गढ़वाली आदि, पश्चिमी हिंदी से ब्रजभाषा, कन्नौजी, खड़ी बोली, हरियाणवी, दक्खिनी आदि।