अपनों से वक्त
मांगी थी मन्नत अपने से अपनों के लिए। पर कबूल किया ना गया । क्या खता हुई पता नहीं, पर पूरी-पूरी जिंदगी विरान हो गई।ताउम्र मेरी खुद से शिकायत रहेंगी। वक्त , काश कुछ दिन और साथ ।समय बदल गया मानसिकता नहीं।आज भी विधवा से बद्तर जिंदगी है तलाकशुदा औरत का घर से बाहर तक हजारों लोगों को नजरिए को सहना पड़ता है, जिंदगी रिश्तो की मुराद है,जब वही जीवन से विदा हो जाएं और वेदना की बात करने वालों की , जख्म कुरेदने वालों की इस दुनिया में कमी है क्या । वह किसे अपना कहे , भाई अच्छा है भी तो वो घर से बाहर रहेगा , भाभी -ननद शायद ही कोई सहेली होती होगी, उनका नासमझ अत्याचार ,कलह ,घर की शांति छीन लेती है। इतना ही नहीं बदलता सब कुछ पहले अपने शब्द से, शुरू करते कटाक्ष फिर,हर जगह शुरू होगा शिकायत दर्ज चुंगली , फिर हरेक पड़ाव पर धीरे -धीरे वार , जैसे हरेक पल कोसना,उसकाना कोई ना मिले तो कामवाली बाई के पास भी चुगली कर लेना अंतिम अस्त्र भाई के को खिलाफ कर अपने को विशेषाधिकार प्राप्त कर लेना लेकिन उस मूर्ख भाई को बिल्कुल पता ही नहीं चलता पता नहीं कौन मूर्ख बन रहा है । अरे उसने तो तुमको बस इस्तेमाल किया,अपनी भावना कहती गयी और तुम्हें शिकायत से खुद के खिलाफ खड़ा कर दिया।किस उद्देश्य से बाहर निकल आई सबको मालूम है,जो मुसीबत खड़ी कर दे,वो दूसरे की बेटी ,बहन जो सिर्फ तुम्हारी पत्नी बन सकती है बेटा, भाई और साथ बिस्तर शेयर करेगी जो सब जानती है।मुसीबत में जो साथ ना दे ,वो किस काम का ,उसका भरोसा, विश्वास चाहें वो अपना हो या पराया। दिल तो दुखता है हरेक का अपने हलात नजरिए से, पर कुछ बेहतर राजनीतिक हालात पैदा करना जानते हैं ज़ुबान में कंगली, अपने ही वक्त में निकला था,अव तो स्वीकार किया स्वागत योग्य है जिंदगी आदत है।अपने से वक्त विदा ।-डॉ. सीमा कुमारी।15/7/024की स्वरचित रचना।