अपनों को अपनाया मैने
अपनों को अपनाया मैंने
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अपनों को अपनाया मैंने,
दिल से गले लगाया मैंने।
अरमानों की भेंट चढ़ाकर,
भावों को दफनाया मैंने।
हाव-भाव बाज़ार देखकर,
खुद का भाव गिराया मैंने।
मोह-माया जाल फैलाकर,
लोभी को फ़ंसाया मैंने।
हौसलों को गले लगाकार,
संकट काल हराया मैंने।
सदियों से जो बंद पड़े थे,
राहों को खुलवाया मैंने।
मनसीरत तो कभी न हारा,
दुश्मन को भरमाया मैंने।
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सुखविंदर सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)