अपनों का धोखा
आज वॄध्दाश्रम में दो वरिष्ठ नागरिक आयी है । वह सबसे मिल रही है और अपना परिचय दे रही है, उनमें एक कमला देवी और दूसरी रमा देवी है ।
रात को खाने के लिए सब बैठी थी तभी कमला देवी ने रमा देवी से आश्रम में आने का कारण पूछा । रमा देवी ने बताया :
” भगवान का दिया हुआ मेरे पास बहुत कुछ है । पैसा जायदाद तो है पर उसने मेरी गोद खाली रखी अब इतने बड़े घर में अकेलापन खाने को दौडता है । पति के जाने के बाद सब कुछ बेगाना सा हो गया, सोचा यहाँ चार लोगों के साथ रहूंगी, दुःख दर्द बांटूगी , कुछ अपनी कहूँगी और कुछ सुनूंगी । रिश्तेदारों के यहाँ भी कब तक और कितने दिन रह सकती हूँ ।”
रमा देवी की बात सुन कर सब भावुक हो गयी और उनके निर्णय को ठीक मान रही थी ।
अब सब कमला देवी की तरफ देख रहे थे । कमला देवी की आँखो से झर झर आंसू बह रहे थे ।
रमा देवी ने उन्हें संभाला फिर कमला देवी ने कहा :
” भगवान ने मुझे सब कुछ देने के साथ दो बेटे बहू पोते सब दिये । पति के गुजरने के बाद , लड़के बहू की निगाह बदल गयी , वह मकान जायदाद हड़पने में लग गये और रात दिन परेशान करने लगे , मुझे एक कमरे में बंद कर दिया मैंने कूलर में भरे पानी को पी कर भूखे रह कर प्यास बुझाई , फिर खिड़की से बाहर निकल कर अपने एक रिश्तेदार के यहाँ पहुंची , पुलिस , जन शिकायत में शिकायत की , वही है रिश्तेदार के यहां भी कितने दिन रहे और जब बात जान से मारने तक आ जाये तो वापिस तो जा नहीं सकती थी इसलिए फिर यहाँ आ गयी ।”
फिर अपने को संभालते हुए बोली :
” बहन अगर अपने नहीं है तो मन मसोसकर रहा जा सकता है लेकिन अपने हो कर भी अपने नहीं हो तो दुःख ज्यादा होता है ।”
और कमला देवी उठ कर अपने कमरे में चली गयी ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल