अपने वतन पर सरफ़रोश
मैं आज हूँ जिस कदर, अपने वतन पर सरफ़रोश।
मैं चाहता हूँ कि कल को, कम नहीं हो मेरा यह जोश।।
मैं आज हूँ जिस कदर——————-।।
मैं चल रहा हूँ अभी तो, ईमान अपने दिल में रख।
किसी से शिकवा नहीं है, ना किसी पर कोई शक।।
नहीं मांगूगा मैं किसी से, वह जो मैं नहीं दे सकता।
प्यासा नहीं हूँ खून का, नहीं हो किसी पे मुझको रोस।।
मैं आज हूँ जिस कदर——————–।।
अगर किसी से होगी खता, तो उसको मैं समझाऊंगा।
दिखाऊंगा उसको सही राह, अच्छा उसको बनाऊंगा।।
इंसाफ पूरा करुंगा मैं, ईमान से बिना भेदभाव किये।
नहीं किसी पर करुंगा सितम, रखूंगा मैं पूरा होश।।
मैं आज हूँ जिस कदर——————–।।
लेकिन जब दुनिया में, नहीं मिलेगा इंसाफ मुझको।
चलना पड़ सकता है तब, गलत राह पर भी मुझको।।
बन सकता हूँ मैं एक दोष, नहीं कहना तब गलत मुझे।
किसने किया है मुझपे जुल्म, कि हो गया मैं वतनफरोश।।
मैं आज हूँ जिस कदर———————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)