अपने बाप से बाप कहूंगा
अपने बाप को बाप कहूंगा
अमर दलित समुदाय का एक नौकरीपेशा व्यक्ति था। वह जब भी अपने समाज के लोगों के सामने होता उन्हें पढ़ने लिखने और संघटित हो संघर्ष करने की स्लाह देता। लोग उसे बहुत सम्मान देते। एक दिन वो अपने पड़ोसी अनपढ़ मजदूर युवक को साथ ले नजदीक के शहर गया। रास्ते में वे एक दूकान पर रुके। वहां उपस्थित कई लोग थे, उनमे चर्चा चल रही थी शादी विवाह को लेकर। बेवजह दूसरों की बात में बोल पड़ने की बुरी आदत के कारण अमर उन लोगों की चर्चा में हस्तक्षेप कर बैठा। वो अच्छा वक्ता था, ज्ञानी था, वहां उपस्थित सभी लोग उसकी बातों से बहुत प्रभावित हुए। तभी उनमें से एक व्यक्ति ने अमर से पूंछा -भाई साहब! यहाँ हम सभी लोग तो लोधी राजपूत हैं, आप कौन सी बिरादरी से हो? अमर ने तपाक से कहा – मैं राजपूत ठाकुर हूँ। तभी दूसरे व्यक्ति ने अमर के साथी युवक से पूंछा कि भाई साहब आप चौहान तो नहीं लगते हो, आप किस बिरादरी के हैं? इस पर वह मजदूर दलित(जाटव) युवक बोला- भाई साहब! मैं तो अपने बाप से बाप कहता हूँ, दुसरे को नहीं, मैं तो जाटव हूँ, जिसे आप लोग चमार भी कहते हैं। अमर सिर्फ मुँह देखने के सिवाय कुछ न कह सका।
– डॉ विजेन्द्र प्रताप सिंह