अपने बदल गये,
अपने बदल गये,
हम को लोग भूल गये हैं,
पाये दानों की तरह,
हम उनके काम आया करते थे,
पूराने महलों की दीवारों की तरह,
एक दिन कामयाबी पा ली उन्होंने,
कभी हम कामयाबी थे उनकी सालों की तरह,
न समझ थे वो भूल जाया करते थे,
हम साथ दिया करते थे दीवानों की तरह,
हर सलाह मसौहरा हमसे लिया करते थे,
आज वो हमें मसौहरा दे रहे हैं नबावों की तरह,
कभी हमें दिल में बसाया करते थे,
दीवानों की तरह,
हम उनके लिए बसंत बैला बहार थे,
अब भूल गए हैं वो हमें पतझड़ की बीरानों की तरह,
हम को लोग भूल गये हैं,
पाये दानों की तरह,
हम उनके काम आया करते थे,
पूराने महलों की दीवारों की तरह,।।
लेखक—Jayvind Singh Ngariya ji