अपने पास पाती हूँ
अपने पास पाती हूँ
तुम्हारी यादों में
जब-जब डूबती हूँ
हो जाता है मेरा
नित्य गंगा स्नान,
जब भी
हो आती हूँ
मायके के घर
सिमट आते हैं
सारे के सारे तीर्थ वहाँ,
जब स्पर्श करती हूँ
तुम्हारी पहनी हुई साड़ियाँ
रच-बस जाती हूँ
तुम्हारी महक में
होने लगता है
तुम्हारे आसपास होने का
शक्तिशाली अहसास,
छूती हूँ तुम्हारी
रखी हुई चूड़ियों को
तो याद आते हैं
एफ•आर•आई• में रहने के दिन
जब पंडितवाड़ी की
चूड़ियों की दुकान में
तुम मेरे साथ
चूड़ियाँ पहनने जाया करती थी
असीस की चूड़ी
पहनाने के लिए बोलना
मैं कभी नहीं भूलती थी,
तुमसे जुड़ी
इतनी सारी बातें हैं
जो एक-एक कर
याद आती जाती हैं
यादों की इस वर्षा में
भीग-भीग जाती हूँ
कभी हँसती
कभी धीरे से मुस्कुराती हूँ
आँखों में आने वाले
अश्रुओं को पोंछती जाती हूँ
माँ! तुम्हें सदा
अपने पास पाती हूँ।
#डॉभारतीवर्माबौड़ाई