-अपनी कैसे चलातें
-अपनी कैसे चलातें
खूबसूरत फूल की महक है तेरी यादें
सुकून देती है वह मुरझाती नहीं मासूम बातें,
नेहरस से भरी लगे थे हर एक पंखुड़ियो से वादें
गुरूर था घना जैसे किस्मत के चमकते प्यादे,
अपनत्व घनत्व भारी लगा भरने लगे रीते खाते,
लहू नहीं था रिश्तों का फिर भी गहरा लगे ये नाते,
लगाव का छाप रूह तक पड़ा जाएं ना हटाए जाते,
मिलना प्रभु की मर्जी से अंतर्मन छूं चुकी अनकही बातें,
बिछड़ना प्रभु की मर्जी फिर अपनी-अपनी कैसे हम चलाते।
-सीमा गुप्ता,अलवर राजस्थान