अपनी कलम से…..!
अपनी कलम से कुछ नया, आयाम चाहता हूं
अब तक जो मैं लिख न सका, वो कलाम चाहता हूं
अपनी कलम से०…..
तू बन–बन कर हवा का झोंका, मेरे मन को बहका जाती
भीनी–भीनी सी कोई खुशबू, एहसासों को महका जाती
गीत लिखूं तेरे बोलों पर, एक पयाम चाहता हूं
अब तक जो मैं लिख न सका, वो कलाम चाहता हूं
अपनी कलम से०…..
जलता सूरज सा मैं लिख दूं, तपती धरती सा मैं लिख दूं
अपने जज़्बातों को लिख दूं, तेरा चांद सा चेहरा लिख दूं
तेरी झील सी आंखों का, इक सलाम चाहता हूं
अब तक जो मैं लिख न सका, वो कलाम चाहता हूं
अपनी कलम से०…..
तनहा–तनहा हैं दीवारें, दर हो जाते दूर कहीं
अपनी दहशत से घबरा कर, सर भी सरका और कहीं
बरखा,बिजली,आंधी, तूफाँ, पर लगाम चाहता हूं
अब तक जो मैं लिख न सका, वो कलाम चाहता हूं
अपनी कलम से०…..
जल जाते हैं सपने मेरे, दर्द बना जो राख बुझी
प्यार का दिया जल उठता है, रोशनी भागे और कहीं
तेरे झिलमिल से आँचल में, अब मुकाम चाहता हूं
अब एक जो मैं लिख न सका, वो कलाम चाहता हूं
अपनी कलम से०…..
–कुंवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
*यह मेरी स्वरचित रचना है
*©सर्वाधिकार सुरक्षित