*चले जा रहे दुनिया से सब,अपनी-अपनी बारी*
*चले जा रहे दुनिया से सब,अपनी अपनी बारी *
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चले जा रहे दुनिया से सब, अपनी-अपनी बारी
फिक्र सफर की जिसको उसने की अपनी तैयारी
(1)
कुछ ने बाँधा माल जन्म – भर ढोते गठरी लादे
ठगते रहे जगत में मिलते जो जन सीधे-सादे
बूढ़े हुए कमर झुक आई चतुराई कब छूटी
बोझ उठाकर ढोते – ढोते हड्डी – हड्डी टूटी
पैर कब्र में लटके हैं लेकिन अब भी मति मारी
(2)
पद आया पदवी आई राजा बन कर दिखलाया
बरसों करी हुकूमत शासक बनकर हुकुम चलाया
पकड़ हुई जब ढीली सारे राजपाट को खोया
देह न करती काम ,याद कर – करके पिछला रोया
तानाशाह भिखारी बनकर जाते किस्से जारी
( 3 )
न कुछ लाए न रख पाए , न कुछ लेकर जाना
खाली हाथ मुसाफिर आता ,खाली हुआ रवाना
धन्नासेठ तिजोरी में जो , रक्खे हुए खजाना
उन्हें सफर में कब इस धन से ,मिलता पानी – दाना
रही बावरी दुनिया जोड़े ,महल – दुमहले भारी
(4)
पूँजी जोड़ो राम – नाम की ,काम सफर में आती
इससे आवागमन न रहता ,मंजिल है मिल जाती
रोजाना जो देह छोड़कर , ध्यान – जगत में जाते
अंतिम – यात्रा पर जब जाते ,नहीं लौट कर आते
कब दुनियादारी से ज्यादा ,रखी उन्होंने यारी
चले जा रहे दुनिया से सब अपनी-अपनी बारी
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451