अपना सकल जमीर
नैतिकता की आजकल,पीटें वही लकीर ।
बैठे हैं जो बेच कर,अपना सकल ज़मीर ।।
रखी किसी से आपने,ज्यादा ही उम्मीद ।
बदले में अहसान के, लेगा तुम्हे खरीद ।।
रमेश शर्मा.
नैतिकता की आजकल,पीटें वही लकीर ।
बैठे हैं जो बेच कर,अपना सकल ज़मीर ।।
रखी किसी से आपने,ज्यादा ही उम्मीद ।
बदले में अहसान के, लेगा तुम्हे खरीद ।।
रमेश शर्मा.