अपना – पराया
अपना और पराया मन भाव,
न कोई अपना न पराया होता हैं।
जिंदगी में हम सभी को एक,
बस रिश्ते में सोच रहतीं हैं।
बस मन भाव में अपना,
या पराया सच एक रहता हैं।
स्वार्थ और फरेब हम सब,
मन भावों में रखते हैं।
जीवन में बस एक सोच,
और उम्मीद हम कहते हैं।
बस अपना पराया यही,
मन की उम्मीद होती हैं।
न उम्मीद न स्वार्थ हो,
बस न अपना पराया मन भाव है।
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र