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11 Sep 2024 · 1 min read

अपनापन

अपनापन
सब मेरा मैं सबका
सबको अपना जान
क्या तुझे नहीं है भान ?
भाई सबको अपना जान

क्या जात – पात
क्या कु – जात?
सब इंसान
सब इंसान।
सबको एक ही ने बनाया
जिसे कहते है भगवान!
नाम भले ही अनेक हो
भाव,ध्येय एक हो

हम सबका एक ही लक्ष्य
न्याय,धर्म और सत्य
न्याय में हो उभयतृप्ति
धर्म में जीवन जीने की व्यवस्था
सत्य में जीवन की सार हो
सबको सहज स्वीकार हो।

डरपोक,धर्मभीरू लोग नजर न आना
जिसने इंसान की व्यवस्था न जाना!
इंसान इंसान की
विकास रोकना
आपस में गर्दिशें फैलाना।

नासमझ से समझदार भला
टल जाती है बला
खुद को ज्ञानवान बनाओ
अज्ञानता को जोर से भगाओ।

रचनाकार
संतोष कुमार मिरी
शिक्षक जिला दुर्ग।

Language: Chhattisgarhi
Tag: Poem
32 Views
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