अन्नदाता
मुक्तक – अन्नदाता
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हवाएँ की घड़ी आयी,
घटा घनघोर छायी है।
बरसता जोर से पानी,
देख धरती में आयी है।
किसानों के खिले चेहरे,
देख फसल लहलहाई है।
जो धरतीपुत्र कहाता है,
वही तो अन्नदाता है।
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स्वरचित©®
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
छत्तीसगढ़(भारत)