अन्नदाता किसान
अतिशय करता नित्य श्रम,रख मौसम का ध्यान।
पालक दूजा वह जगत, कहते जिसे किसान।
कहते जिसे किसान,कर्म जग हित है करता।
उपजा कर के अन्न ,पेट जग का है भरता।
वर्षा गर्मी शीत ,नहीं इनसे वह डरता।
लख मौसम का क्रोध,लगे फसलों को जब भय।
होता व्यथित किसान, डरे वह इससे अतिशय।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम