अन्धी दौड़
इस अन्धी दौड़ के सर्कल में ख़ुद को मत फंसाएं अब
सुकूनत है अगर मंज़िल तो थोड़ा ठहर जाएं अब
पकड़ कर आईना हाथों में अक्सर फ़िक्र में दिखना
मेरी मानें तो इतना बोझ सर पर मत उठाएं अब
अंधेरा देखना है तो जलाएं शम्अ ख़ुश होकर
अगर है रोशनी पानी तो फिर ख़ुद को जलाएं अब
सभी बहती हुई नदियों की मुश्किल एक जैसी है
जिन्हें है तैरना आता उन्हें कैसे बचाएं अब
अगर सुख चैन पाना है तो रस्ता फिर यही है एक
अभी तक जो हुआ है वो सभी कुछ भूल जाएं अब
— शिवकुमार बिलगरामी