अन्तर्मन को झांकती ये निगाहें
अन्तर्मन को झांकती ये निगाहें
टटोलतीं है,अक्स मेरा तुझमें कहीं।
तमाम उलझनों में उलझा है तू,
ढूंढने पर भी, मैं कहीं दिखती नहीं।
क्षितिज सी भ्रमित, तुझमें मिल गयी हूं,
मेरा मुझमें क्या बचा ,तू बता सहीं।
यकीं दिल ने तूझ पर,खुद से ज्यादा किया,
पर कभी पाने की तुझे नहीं चाहत रही।
चाहती हूं भूल सब, मिठास रिस्ते में लाऊं,
पर दिल नहीं कर पाता भरोसा वहीं।