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9 Nov 2022 · 4 min read

अनोखा प्रतिशोध – कहानी

मिश्रा जी और यादव जी का परिवार एक ही कॉलोनी में रहते थे और एक ही विभाग में कार्यरत थे | इन दोनों परिवारों के बीच काफी घनिष्ठ सम्बन्ध थे | मिश्रा जी के दो बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी | बेटा रोहित और बेटी मुस्कान | जबकि यादव जी के एक ही बेटा था पंकज | दोनों परिवार मध्यम वर्ग से संबंधित थे इसलिए दोनों परिवारों के बीच सम्बन्ध मधुर थे | एक दूसरे के घर जाना और साथ में सभी त्यौहार मनाना | पंकज और रोहित दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे |
एक दिन की बात है कि अचानक यादव जी के बेटे पंकज का एक्सीडेंट हो जाता है और उसे बचाने के लिए दो बोतल खून की आवश्यकता होती है | शहर के ब्लड बैंक में खून उपलब्ध नहीं होने से यादव जी को अपने बेटे पंकज की चिंता होने लगती है | खून की व्यवस्था न होने के कारण वे मिश्रा जी से निवेदन करते हैं कि वे अपने बेटे रोहित का दो बोतल खून दिलवा दें तो पंकज की जान बच जाए किन्तु मिश्रा जी ऐसा करने से मना कर देते हैं कि पंकज यदि खून देगा तो उसे कमजोरी हो जायेगी और उस कमजोरी को दूर करने में उसे महीनों लग जायेंगे | अब तो यादव जी को लगने लगा कि उनके बेटे पंकज का बचना नामुमकिन है | उनका कलेजा मुंह को आने लगता है | इसी बीच अस्पताल में कोई व्यक्ति उन्हें बताता है कि शहर में एक समाज सेवी संस्था है आप उनके पास जाइए शायद वे आपकी कोई मदद कर सकें | यादव जी अंतिम प्रयास में सफल हो जाते हैं और उस समाज सेवी संस्था की मदद से खून की व्यवस्था हो जाती है और पंकज की जान बच जाती है यादव जी उस संस्था का धन्यवाद करते हैं | यादव जी भी एक मानव होने का धर्म निभाते हुए उस समाज सेवी संस्था को सहायता राशि भेंट करते हैं ताकि जरूरतमंदों की सहायता हो सके |
यादव जी का अब मिश्रा जी और उसके परिवार के प्रति मोहभंग हो जाता है | वे अब मिश्रा जी के साथ कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहते | दूसरी ओर मिश्रा जी भी इस स्थिति में नहीं हैं कि वे यादव जी को मना सकें और अपनी गलती के लिए माफ़ी मांग सकें | वे चाहकर भी अब यादव जी से आँखें नहीं मिला पाते |
खैर दिन गुजरते रहते हैं और इस घटना को सभी भूल चुके होते हैं और सामान्य जीवन जीने लगते हैं | इसी बीच एक दिन मिश्रा जी के बेटे रोहित का एक्सीडेंट हो जाता है | और उसकी जान बचाने के लिए खून की जरूरत होती है | मिश्रा जी चाहकर भी अब यादव जी से मदद मांगने की स्थिति में नहीं थे | वे अपनी ओर से पूरी कोशिश करते हैं कि कहीं से खून की जरूरत पूरी हो जाए | पर थक – हारकर वापस अस्पताल की ओर चल देते हैं इस उम्मीद में कि उनके बेटे रोहित की जान अब केवल और केवल परमात्मा ही बचा सकते हैं | मिश्रा जी जब अस्पताल पहुँचते हैं तो उनकी पत्नी उनसे कहती है कि खून की व्यवस्था हुई कि नहीं | इस सवाल पर मिश्रा जी कोई जवाब नहीं दे पाते और धड़ाम से जमीन पर गिर जाते हैं | तब मिश्रा जी की पत्नी उन्हें बताती है कि आप चिंता न करें हमारा रोहित ठीक है | यह सुनते ही मिश्रा जी की सांस में सांस आती है | वे कहते हैं कि किस पुण्यात्मा ने मेरे बच्चे की जान बचाई है | मैं उससे मिलना चाहता हूँ | पर मिश्रा जी की पत्नी कहती हैं कि जिसने भी हमारे बेटे रोहित की जान बचाई है वे अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते | पर मिश्रा जी जिद पर अड़ जाते हैं कि कुछ भी हो मुझे उस मानवता के पुजारी से मिलना ही है | अंत में अस्पताल के माध्यम से वे पता लगा ही लेते हैं और पता लगते ही स्वयं को गिरी हुई नज़रों से देखने लगते हैं | फिर भी वे यादव जी और उनके बेटे के चरणों में पड़कर माफ़ी मागने लगते हैं कि जब आपको मेरी आवश्यकता थी मैंने आपकी कोई मदद नहीं की | आज आपने मेरे बेटे का जीवन बचाकर मुझ पर और मेरे परिवार पर उपकार किया है | इस पर यादव जी कहते हैं कि सबका अपना – अपना तरीका होता है प्रतिशोध लेने का | मैंने भी अपना प्रतिशोध पूरा कर लिया आपके बेटे की जान बचाकर | मेरा प्रतिशोध लेने का यही तरीका है | यादव जी कहते हैं कि मुझे आपसे कोई गिला – शिकवा नहीं | आपका बेटा रोहित भी मेरे बेटे पंकज की तरह है | मैं उन दोनों में भेद नहीं कर सकता |
दोनों परिवार पुनः एक साथ ख़ुशी – ख़ुशी रहने लगते हैं |

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