“ अनेक रंग “
“ अनेक रंग “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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विभिन्य रंगों से यह
दुनियाँ सजी हैं ,
सब एक होकर भी
लगते अलग -अलग हैं !!
कोई अपनी उलझनों
में उलझा हुआ है !
बंद कमरे में रहकर भी
दूर की सोचता है !!
हम तो फूल हैं
इसी उपवन के
परवारिस हमारी एक जैसी !
पर रंग रूप
सुंगंध हमलोगों की
मिलती नहीं एक जैसी !!
कोई लिखता है कोई पढ़ता है
कोई मौन रहकर भी
कुछ कहता है !
किसी की आंखे बोलतीं हैं
किसी के अंगों
की भंगिमा से बातें
झलकतीं हैं !
सब लोग अपने में
निपुण हैं !
एक जैसे सबके सब
हो नहीं सकते !
स्नेह ,तालमेल ,समर्पण
के बिना
हम कभी भी रह नहीं सकते !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल “
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड