#अनुभूत_अभिव्यक्ति
#अनुभूत_अभिव्यक्ति
(बीते साल आज ही के दिन पर केंद्रित अवचेतन तन में निहित चेतन मन की एक कविता। मूल भाव मर्म तक पहुंचें, यह अपेक्षित है। निज स्वास्थ्य लाभ की औपचारिक कामना कदापि अपेक्षित नहीं)
■ शर-शैया पर अवचेतन तन।।
【प्रणय प्रभात】
“कल तक मैं शर-शैया पर था।
आहट थी उत्तरायणी सी।।
था सन्नाटों का शोर बहुत,
आंखों में तम घनघोर बहुत।
केवल सराय सा प्रांगण था,
निस्तब्ध बहुत समरांगण था।
थे श्वान-गीध आहत निढाल,
कर गए कूच सारे शृगाल।
कुछ यक्ष-प्रश्न अन्तस में थे,
उद्गार तनिक ना बस में थे।थी देह समूची पाषाणी,
क्या साथ निभा पाती वाणी?
चादर सी रही मुझ पे छाई,
बस मेरी सहचर परछाई।
हो जाएगा पिंजरा खाली?
हर रात इसी संशय वाली।
अरुणाई आनी-जानी थी,
हर एक भोर अंजानी थी।
सहसा थोड़ा पर्दा सरका,
यूं लगा उजाला सा चमका।
सम्मुख पाए करुनानिधान,
कर में बंसी कांधे कमान।
बोले साहस मत हार वत्स,
समरांगण रहा पुकार वत्स।
धारण रख यही वेश अब भी।
जीवन का समर शेष अब भी।।”
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
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【आफ्टर हॉस्पीटलाइज़ेशन】