अनुभव वय सै आय ।
ज्ञानी की होती नहीं, अनुभव वय सै आय ।
खेल-खेल में सीख लें, घटी न व्यर्थ गँवाय ।।
घटी न व्यर्थ गँवाय, समय की क़ीमत जानौ ।
संवत नया बुलाय, उसे अब तौ पहचानौ ।।
कह दीपक कविराय, छानकै पीजौ पानी ।
सागर घड़ा भराय, बनौ नैं कोरे ज्ञानी ।।