अनुभव-मेरे जीवन का-3
माना कि मनोहर दूर थे तुमसे , पर इतने भी नही,
थकान से चकनाचुर थे, मगर इतने भी नहीं ,
हमें अपनी महफ़िल में शामिल नहीं किया ,
माना गमों से भरपूर मजबूर थे , मगर इतने भी नहीं l
ख्वाब कोई फिर आखो में सजाने नहीं दिया ,
कुछ कहा भी नहीं, कुछ सुनाने भी नहीं दिया ,
अरे भूल से एक बार मैने तुम्हे रुला क्या दिया ,
ज़िन्दगी भर तुमने तो मुझे मुस्कराने भी ना दिया