*अनुपम दृश्य निहारा 【भक्ति-गीत】*
अनुपम दृश्य निहारा 【भक्ति-गीत】
★★★★★★★★★★★★★★★★
झिरी खुली जब दरवाजे की अनुपम दृश्य निहारा
(1)
भीतर थे भगवान विराजे रत्न-प्रभा बिखराते
चकाचौंध उस अँधियारे में भी निज की कर जाते
सौ-सौ बार प्रणाम कर रहा भावुक हृदय हमारा
(2)
सदियाँ बीतीं कहाँ गए थे ,तुम खोए थे बाबा
साथ हमारे लगता जैसे , तुम रोए थे बाबा
देर नहीं है खोलेंगे अब तो दरवाजा सारा
(3)
आत्म-तत्व की हुई दासता, पूँजी हमने खोई
आत्मबोध बिसराया हमने , मूल चेतना सोई
खंडित सहस्रार को अर्पित बूँद-बूँद जलधारा
झिरी खुली जब दरवाजे की ,अनुपम दृश्य निहारा
————————————————–
रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451