अनुगीतिका
अनुगीतिका
परिभाषा
यदि एक ही विषय पर केन्द्रित किसी गीतिका के युग्म अभिव्यक्ति की दृष्टि से पूर्वापर सापेक्ष हों तो उसे अनुगीतिका कहते हैं।
अनुगीतिका वास्तव में गीत के निकट प्रतीत होती है किन्तु पूर्णतः गीत नहीं हो सकती है क्योंकि इसमें अन्तरों अभाव होता है और यह गीतिका भी नहीं हो सकती है क्योंकि इसके युग्म पूर्वापर सापेक्ष होते हैं। अस्तु इस कृतिकार ने इस विधा को ‘अनुगीतिका’ के नाम से प्रतिष्ठित किया है। इसका तानाबाना गीतिका जैसा होता है जबकि भावप्रवणता गीत जैसी होती है।
अनुगीतिका के लक्षण
1 इसका तानाबाना मुख्यतः गीतिका जैसा ही होता है जिसे यथावत ग्रहण किया जा सकता है। इसे यहाँ पर दुहराने की आवश्यकता नहीं है।
2 इसके अधिकांश युग्म अपनी अभिव्यक्ति के लिए मुखड़ा या किसी अन्य युग्म के मुखापेक्षी होते हैं।
3 इसके युग्मों में एक ही विषय का आद्योपांत निर्वाह होता है और यह समग्रतः पाठक-मन पर गीत जैसा प्रभाव छोड़ती हैं।
उदाहरण
निम्नलिखित रचना का तानाबाना गीतिका जैसा है किन्तु इसके अधिकांश युग्म अपनी अभिव्यक्ति के लिए मुखड़ा के मुखापेक्षी हैं और एक ही विषय ‘मीरा’ पर केन्द्रित रहते हुए गीत जैसा प्रभाव छोड़ते हैं, इसलिए यह गीतिका न होकर ‘अनुगीतिका’ है।
अनुगीतिका- गरल पिया होगा
मीरा ने प्याले से पहले, कितना गरल पिया होगा।
तब प्याले ने गरल-सिंधु के, आगे नमन किया होगा।
अंतर से अम्बर तक बजते, घुँघरू वाले पाँवों में,
कितने घाव कर गया परिणय, का बौना बिछिया होगा।
नटनागर की प्रेम दिवानी, झुलसी होगी बाहों में,
रूप दिवाना हो कोई जब, खेल रहा गुड़िया होगा।
अबला ने विषधर के दंशों, से मधुकोष बचाने को,
घुट-घुट शहदीले अधरों को, कितनी बार सिया होगा।
इकतारा ले कुंजवनों में, झूम-झूम गाता जीवन,
घर-आँगन की नागफनी में, कैसे हाय, जिया होगा।
प्रीत-पगे नयनों में प्रिय की, प्राण-प्रतिष्ठा करने को,
रिश्तों का सीसा पिघलाकर, पहले डाल दिया होगा।
विदा माँगकर शृंगारों से, अंगारों पर चलने को,
विवश किया होगा जिसने वह, छलियों का छलिया होगा।
व्याख्या
उपर्युक्त अनुगीतिका के युग्मों को पढ़ने पर यह स्पष्ट नहीं होता हैं कि बात किसके बारे में कही जा रही है। यह बात तभी स्पष्ट होती है जब युग्म को मुखड़े से जोड़कर देखा जाता है। इस प्रकार इसके युग्म अपनी अभिव्यक्ति के लिए मुखड़ा के मुखापेक्षी हैं अर्थात पूर्वापर निरपेक्ष न होकर पूर्वापर सापेक्ष हैं। इस अनुगीतिका में गीतिका के अन्य लक्षण यथावत विद्यमान हैं, यथा-
(1) इस अनुगीतिका की भाषा परिष्कृत हिन्दी खड़ी बोली है जिसमें हिन्दी-व्याकरण का अनिवार्यतः पालन हुआ है,
(2) इस अनुगीतिका की लय का आधार-छन्द लावणी है। मापनीमुक्त लावणी छन्द के चरण में 30 मात्रा होती हैं, 16-14 पर यति होती है, अंत में वाचिक गुरु होता है। यह छन्द चौपाई और मानव के योग से बनता है। मुखड़ा की एक पंक्ति से इसकी पुष्टि निम्न प्रकार होती है-
अंतर से अम्बर तक बजते (16 मात्रा), घुँघरू वाले पाँवों में (14 मात्रा)
अंतर से अम्बर तक बजते (16 मात्रा) = चौपाई
घुँघरू वाले पाँवों में (14 मात्रा) = मानव
इस प्रकार,
चौपाई + मानव = लावणी
(3) इस अनुगीतिका की तुकान्तता पर दृष्टिपात करें तो,
समान्त – इया
पदान्त – होगा
अचर या तुकान्त = इया होगा
चर = प्, क्, छ्, ड़्, स्, ज्, द्, ल्
समान्तक शब्द- पिया, किया, बिछिया, गुड़िया, सिया, जिया, दिया, लिया।
रेखांकनीय हाई कि मुखड़ा के दोनों पद तुकान्त हैं, अन्य युग्मों का पूर्व पद अतुकान्त और पूरक पद सम तुकान्त है।
(4) इस अनुगीतिका में मुखड़ा निम्न प्रकार है-
मीरा ने प्याले से पहले, कितना गरल पिया होगा।
तब प्याले ने गरल-सिंधु के, आगे नमन किया होगा।
इससे आधार-छन्द ‘लावणी’ और तुकान्त ‘इया होगा’ का निर्धारण होता है।
(5) न्यूनतम पाँच युग्म के प्रतिबंध का निर्वाह करते हुये इस गीतिका मे सात युग्म हैं। प्रत्येक युग्म का पूर्व पद अतुकान्त तथा पूरक पद तुकान्त है। अधिकांश युग्मों की अभिव्यक्ति मुखड़ा की मुखापेक्षी होने के कारण पूर्वापर सापेक्ष है। अंतिम युग्म में रचनाकार का उपनाम आने से यह मनका की कोटि में आता है।
(6) विशिष्ट कहन का निर्णय पाठक स्वयं करके देखें कि किस प्रकार युग्मों के पूर्व पद में लक्ष्य पर संधान और पूरक पद में प्रहार किया गया है।
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संदर्भ ग्रंथ – ‘छन्द विज्ञान’, लेखक- ओम नीरव, पृष्ठ- 360, मूल्य- 400 रुपये, संपर्क- 8299034545