अनाम की मौत
ज़िन्दगी उसे नचाती रही कठपुतली की तरह, और वो हर दिन उम्मीद तलाश करता जीने की…हर रात ख्वाब बुनता एक नये सुबह की खुद को तसल्ली देता…अपनी हर थकन हर घुटन को सीने में दबाए…और जब जब्त जवाब दे देता रो पड़ता खुद में हिम्मत पैदा करता, पर जिंदगी ने जैसे उसका तमाशा बना दिया… हर रात सुनहरे ख्वाब और हर दिन सूरज की तपिश से झुलसी उसकी उम्मीद…. फिर एक रात उसने जिंदगी को धोखा दिया और तोड़ दी खुद की साँसों की डोर….और जिंदगी अफ़सोस करती नये शिकार की तलाश में निकल गयी,, क्यूंकि उसका खेल अधुरा रह गया… तमाशा बनाने का।।। और वो गरीब मर गया चुपचाप कि मौत भी गुमनाम रही… एक अनाम की मौत पे….