अनहोनी
अनहोनी के सामने ,
होना पड़ता मौन ।
इस पर वश चलता नहीं ,
इसको रोके कौन ।।
बस इसको स्वीकार कर ,
करना होता काम ।
नया सबेरा आएगा ,
बीत जायेगी शाम ।।
विधि विधान को जानकर ,
करते जो नित काज ।
उनको ही सहयोग नित ,
देता राज समाज ।।
होती है कुसमय सदा,
धीरज की पहचान ।
विपदा मन धीरज धरे ,
है वह चतुर सुजान ।।