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22 May 2023 · 1 min read

अनसुलझे प्रश्न

अनसुलझे प्रश्न

प्रश्न बहुतेरे सुलझ चुके, अब भी अनसुलझे प्रश्न घनेरे
पचहत्तर वर्ष आजादी के बीते, कम नहीं हुए अब भी खतरे
था कभी धर्म आधार बना, और देश विभाजन कर डाला
अनगिन लाशों ने पूछा था, आजादी थी या विष का प्याला?
प्रश्न आज भी है अनसुलझा, अब भी धर्म राजनीति पर हावी
फिरंगी तो कब के चले गए हैं, आज कौन दे रहा है चाबी?
कुछ तो करते हैं छिपकर वार, दूर देश में बैठ कहीं पर
कुछ हैं ढोल पीटते सम्मुख, शर्म हया सब ताक पर रखकर
उठो देश ! अब जागो फिर से, इस उलझन को सुलझा लो
कोई अनसुलझे प्रश्न न हों, अब गद्दारों को सबक सिखा दो
धर्म तो सारे पूज्य हमारे, राजनीति से उनको अलग करो
कहां है मजहब हमें सिखाता, देश के टुकड़े कर डालो ?
*******************************************************
—राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, मौलिक/स्वरचित।

1 Like · 245 Views
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