अनर शहीद
अमर शहीद
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न जाने आग कैसी थी पतंगे से जले हँसते ।
अजब था प्रेम, फंदा चूमने को वे चले हँसते ।।
किया कुर्बान था जीवन सुनी जब पीर माता की ।
अजब साँचा शहीदी था कि जिसमें वे ढले हँसते ।।
🌹
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
🪷🪷🪷
अमर शहीद
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न जाने आग कैसी थी पतंगे से जले हँसते ।
अजब था प्रेम, फंदा चूमने को वे चले हँसते ।।
किया कुर्बान था जीवन सुनी जब पीर माता की ।
अजब साँचा शहीदी था कि जिसमें वे ढले हँसते ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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