अनमोल रतन
पीड़ा है अनमोल रतन।
कीमत इसकी न्यारी है।
नहीं चाहता कोई पीड़ा।
पर ये सबको प्यारी है।।
पीड़ा ली थी दशरथ ने।
भारी मूल्य चुकाया था।
भेज राम सिया को बन।
अपना प्राण गंवाया था।
पीड़ा ली राधा रानी ने ।
जीवन भर राह निहारी थी।
पीड़ा ले ली थी मीरा ने।
अंसुवन में रात गुजारी थी।
पीड़ा ने भतृहरि को योग।
सिखा कर सिद्ध बनाया।
पीड़ा ने कामी बाभन को।
बाबा तुलसीदास बनाया।
हुआ निराला जग में वह।
जिसने समझा पीड़ा को।
पीड़ा को जाने केवल पीड़ित।
कोई और न जाने पीड़ा को।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव पूनम