*अनन्य हिंदी सेवी स्वर्गीय राजेंद्र मोहन शर्मा श्रंग*
अनन्य हिंदी सेवी स्वर्गीय राजेंद्र मोहन शर्मा श्रंग
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हिंदी के अनन्य सेवकों में श्री राजेंद्र मोहन शर्मा श्रंग का नाम प्रथम पंक्ति के साधकों में लिए जाने के योग्य है। अर्चना के गीत, शकुंतला तथा मैंने कब यह गीत लिखे आपकी अनूठी काव्य रचनाएँ हैं। “शकुंतला” प्राचीन कथा को आधार मानकर लिखी गई रोचक कृति है । आप के गीत स्वयं में अद्भुत छटा बिखेरते हैं । आप के काव्य में जहाँ एक ओर मनुष्य की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी हुई विवशताएँ उजागर हुई हैं तथा उसकी वेदना को स्वर मिला है वहीं दूसरी ओर आपने श्रंगार के वियोग पक्ष को असाधारण रूप से सशक्त शैली में अभिव्यक्ति दी है। आपके गीत अपनी प्रवाहमयता के कारण पाठकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं तथा उनके हृदयों पर सदा-सदा के लिए अंकित हो जाते हैं ।
आपने साधारण – सी घटनाओं में असाधारण प्रयोग किए हैं । चंद्रमा जहाँ एक ओर अपनी शीतलता बिखेरते हुए असंख्य प्रेमियों को प्रेमरस में डूबने के लिए प्रेरित करता है ,वहीं दूसरी ओर जब राजेंद्र मोहन शर्मा श्रंग के कवि ने चाँद को देखा तो उनकी नायिका ने चाँद की उपस्थिति को अपने जीवन पर एक बड़े प्रहार के रूप में महसूस किया । किसी ने सच ही लिखा है “वियोगी होगा पहला कवि ,आह से उपजा होगा गान” अर्थात कवि के हृदय में वेदना की उपस्थिति एक तीव्र उत्प्रेरक की तरह काम करती है और वह कुछ ऐसा लिख जाता है जो सदा सदा के लिए इतिहास के प्रष्ठों पर अंकित हो जाता है । चाँद को देखकर कितनी खूबसूरती से नायिका की मनोदशा का चित्रण कविवर राजेंद्र मोहन शर्मा श्रंग कर रहे है । आप भी अवलोकन करने का कष्ट करें :-
नीरव नभ अंचल में चलता ।
चाँद सदा विरहिन को खलता ।।
देख-देख नभ में चन्दा को,
विरहिन दुखिया यही पुकारे;
अरे न बरसा आज चाँदनी,
आज पिया परदेश हमारे ।
मीठा-मीठा दर्द पिया का,
विरहिन के मानस में पलता ।
ये अँधियारी रात भली है,
निशा चाँदनी तनिक न भाती;
उकसाती सोई पीड़ा को,
याद पिया की बरबस आती ।
श्वाँसें तब बोझिल हो जातीं,
मेरा मन मुझको ही छलता ।
मैं दुखियारी ,निशि उजियारी
पहने तारों वाली साड़ी;
झाँक रही नभ से वसुधा पर,
बिखराती चन्द्रिका निराली ।
जब नभ में हिमकर मुस्काता,
मेरा मन रह-रह कर जलता ।
चाँदनी रात को “तारों वाली साड़ियाँ” पहने हुए देखने की कवि की कल्पना सचमुच अनूठी है और यह एक दुखी बिरहन की वेदना को और भी बढ़ा रही है । काव्य में वास्तविकता का पुट लाने में श्रंग जी सिद्धहस्त हैं।
“मच्छर मुरादाबादी” उपनाम से आपने बहुत सुंदर हास्य व्यंग की काव्य रचनाएँ साहित्य को प्रदान की हैं। होली के हुड़दंग में किस प्रकार से हास्य की सृष्टि की जा सकती है ,यह तो कोई राजेंद्र मोहन शर्मा श्रंग जी से ही सीखे । आम घटनाओं को आपने हास्य का विषय बनाया और कुंडलियों के माध्यम से पाठकों के सामने इस प्रकार प्रस्तुत कर दिया कि कोई जी पाठक मुस्कुराए बगैर नहीं रह सकता । आइए श्रंग जी की हास्य कुंडलियों का भी आनंद लिया जाए :-
(1)
होली का त्यौहार है मचता है हुडदंग,
बच्चों की टोली उधर ,फेंक रही है रंग
फेंक रही है रंग ,बड़ा त्योहार खुशी का,
बुरा न मानो यार ,आज है दिवस हँसी का
कह ‘मच्छर कविराय’ ,चल रहा उधर फुवारा
फक्कड़ जी के मुँह पर ,देखो बजते बारह
(2)
चले सड़क पर जा रहे सज्जन एक प्रवीन
बजा किसी ने दी तभी ,नागिन वाली बीन
नागिनवाली बीन , नाचती थी इक गोपी,
बच्चों ने हुक बाँध ,तार में खींची टोपी
कह मच्छर कविराय ,मचा होली का हुल्लड़,
लगे कहकहे जैसे , फूट रहे हों कुल्हड़
उपरोक्त दोनों कुंडलियों को और भी बेहतर बनाया जा सकता था लेकिन एक बात तय है कि पाठकों को गुदगुदाने की दृष्टि से इनमें कोई कमी कहीं नजर नहीं आ रही है ।
राजेंद्र मोहन शर्मा श्रंग जी केवल एक अच्छे कवि ही नहीं अपितु एक कुशल संगठनकर्ता भी थे । मुरादाबाद में अभी भी आपके द्वारा स्थापित “हिंदी साहित्य संगम” संस्था काम कर रही है । 1960 में आपने ही अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर इसकी स्थापना की थी ।
राजेंद्र मोहन शर्मा श्रंग जी का जन्म 12 जून 1934 को चंदौसी में हुआ था । यहाँ आपकी ननिहाल थी । आप मूलतः काशीपुर उत्तराखंड के रहने वाले थे । आपके पिताजी सरकारी नौकरी में नायब तहसीलदार के पद पर आपकी बाल्यावस्था में झाँसी में कार्यरत थे । अतः आप की प्रारंभिक शिक्षा झाँसी में हुई ।1950 में आपने काशीपुर के उदय राज हिंदू हाई स्कूल से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की । 1952 में चंदौसी के सुविख्यात श्यामसुंदर मेमोरियल कॉलेज से इंटर तथा 1954 में यहीं से बी.ए. किया । 1971 में हिंदी में एम.ए. आपने हिंदू कॉलेज मुरादाबाद से किया । प्रारंभ में विद्युत विभाग में कुछ समय काम किया । बाद में रेलवे में नौकरी की और यहीं से 1996 में रिटायर हुए । आपकी मृत्यु 17 दिसंबर 2013 को हुई ।
अपनी कर्मठता ,साहित्य साधना तथा विचारों की अभिव्यक्ति में कोमल भावनाओं को स्वर देने मे अपनी निपुणता के लिए आप सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे । साहित्यिक मुरादाबाद व्हाट्सएप समूह के पटल पर डॉ मनोज रस्तोगी जी ने 8 – 9 अक्टूबर 2021 को आप के संबंध में परिचर्चा का आयोजन किया ,इसके लिए धन्यवाद।
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समीक्षक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451