Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Jul 2020 · 4 min read

अनजान साधु की सच्ची भविष्यवाणी

संस्मरण

सन् १९७०…..मेरी लगभग साढ़े चार साल की उम्र थी ( दो साल की उम्र से सारी याददाश्त ताज़ा है , माँ कहती हैं ऐसी याददाश्त बिरलों की ही होती है बाबू ( हम पिता को बाबू कहते हैं थे नही , आज भी भले वो हमारे बीच नही हैं तो क्या ) बिरला के ” टोपाज़ ब्लेड ” की फ़ैक्टरी में लेबर ऑफ़िसर थे……सबको नौकरी चाहिये थी चाहे जगह हो चाहे ना हो सारी ज़िम्मेदारी लेबर ऑफ़िसर की ही थी ! अच्छे से याद है हम तीनों बहने एक ही स्कूल में ( सोहनलाल देवरालिया ) जाते थे और भाई जो ढ़ाई साल का था पास ही के किंडर गार्डन में जाता था , छुट्टी का समय अलग होने के कारण वो जल्दी वापस आ जाता । एक दिन एक साधु महात्मा ना जाने कहाँ से घर आ गये अम्माँ का इन पर कभी भी विश्वास नही था…साधु ने बिना पूछे खुद से बताना शुरू कर दिया…तुम लोगों का यहाँ से ठिकाना उठने वाला है बाबू को देखकर बोला अपने जन्मस्थान के पास जाना है परिवार को लेकिन तुम अलग दिशा में जाओगे और तुम्हारे परिवार के वहाँ बसने का कारण तुम्हारी एक पुत्री बनेगी , अम्माँ – बाबू ने साधू की बात एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल दी…..कुछ समय ही बिता था कि एक दिन भाई के स्कूल जाने के समय नक्सलियों ने कार ( अंबेसडर ) पे बम मार दिया और यहाँ चमत्कार हुआ बम पैरों वाली जगह से निकलता हुआ बाहर जा गिरा लेकिन फटा नही और इत्तफाक से भाई उस दिन स्कूल नही गया था । ड्राइवर गाड़ी भगाता घर पहुँचा गाड़ी की हालत सबके सामने थी (आज भी याद है गाड़ी में वो छेद ) मालिकों ने बाबू को फ़्लाइट से काठमांडू भेज दिया और हम सब माँ के साथ ट्रेन से गाँव ( बाबू का जन्मस्थान बनारस के पास चंदौली – रामगढ़ ) आ गये ।
गर्मियों के दिन थे खेतों में पानी दिया जा रहा गाँव के ही क़रीबी परिवार का आठ साल का बेटा भी अपने पिता के साथ खेतों में हुये बिलों को अपने पैरों से मिट्टी डाल कर भर रहा था कि बिल में बैठा विषधर जैसे उसी का इंतज़ार कर रहा था उसने इतना कस कर डंक मारा की बच्चा वहीं गिर कर तड़पने लगा पिता को समझते देर ना लगी बेटे को गोद में उठा कर घर की तरफ़ दौड़ लगा दी लेकिन होनी की अनहोनी को कौन टाल सकता था भला बच्चे का पूरा बदन नीला पड़ चुका था और वो काल के मुँह में समा चुका था । घर पहुँचते ही कोहराम मच गया घर का इकलौता चिराग झट से बुझ चुका था पता नही उपर वाला क्या खेल खेलता है , ख़बर गाँव में आग की तरह फैल चुकि थी पूरा गाँव दौड़ पड़ा था मैं और मुझसे डेढ़ साल बड़ी बहन भी दौड़ पड़े…घर के दलान में सफ़ेद चादर के ऊपर बच्चे का नीला शरीर पड़ा हुआ था मैंने भी देखा बहन ने भी देखा घर वापस आये रात में बहन को तेज़ बुखार चढ़ा तो तीन महीने उतरा ही नही बहन तेज़ बुखार में चिल्लाती ” साँप – साँप….अम्माँ चारपाई के नीचे साँप…यहाँ साँप वहाँ साँप “बहन के दिमाग़ में बच्चे को साँप ने काट लिया ये बात ऐसी घर कर गयी की निकलने का नाम ही नही ले रही थी उसकी हालत दिन – ब – दिन और ख़राब होती जा रही थी बाल झड़ चुके थे दिवार पकड़ – पकड़ कर किसी तरह चल पाती थी । अम्माँ से उसकी हालत देखी नही जा रही थी गाँव के डॉक्टर ने भी कह दिया की बिटिया को यहाँ से हटायें बस अम्माँ ने तुरंत फ़ैसला लिया की जो ज़मीन बनारस में ली गयी थी ( साधु की भविष्यवाणी के बाद बाबू ने ख़रीदी थी ) वहाँ चल कर घर बनवाती हूँ हौसलों की बहुत बुलंद मेरी अम्माँ थोड़े से समान और अपने चार बच्चों के साथ बनारस आईं जिस कॉलोनी में ज़मीन थी उसी कॉलोनी में तिवारी जी के घर में हम किरायेदार हो गये , बाबू आये घर की नींव रखी गई घर बनना शुरू हुआ बहन ठीक हो गई हम स्कूल जाने लगे बाल झड़ने के कारण अम्माँ ने उसका मुंडन करा दिया था वो इतनी ख़ूबसूरत थी ( और आज भी है ) की बिना बालों के भी बेहद ख़ूबसूरत लगती थी । घर पूरा हुआ गृह प्रवेश के बाद कलकत्ते से हमारा सारा समान भी आ गया अम्माँ को कलकत्ता छूटने का दुख आजतक है बाबू कलकत्ते ही नौकरी करते रहे लेकिन हमें वापस नही ले गये , पता नही कहाँ से वो साधु आया और ऐसी सच्ची भविष्यवाणी कर गया की जो कभी सोचा ना था की ऐसा होगा लेकिन वो हो गया । आज भी बहुत पहुँचे हुये सिद्ध महात्मा ऐसे ही विचरते रहते हैं जिनको किसी नाम वैभव से कोई लेना- देना नही होता और वो हमारे जैसे किसी परिवार का भविष्य बता कर आश्चर्य में डाल जाते हैं ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 27/03/2020 )

Language: Hindi
2 Comments · 512 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Mamta Singh Devaa
View all
You may also like:
*साम्ब षट्पदी---*
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
Success Story -3
Success Story -3
Piyush Goel
आँगन में एक पेड़ चाँदनी....!
आँगन में एक पेड़ चाँदनी....!
singh kunwar sarvendra vikram
🙅आज का ज्ञान🙅
🙅आज का ज्ञान🙅
*प्रणय प्रभात*
नहीं खुलती हैं उसकी खिड़कियाँ अब
नहीं खुलती हैं उसकी खिड़कियाँ अब
Shweta Soni
"कर्तव्य"
Dr. Kishan tandon kranti
अपने मन के भाव में।
अपने मन के भाव में।
Vedha Singh
यूं जो कहने वाले लोग है ना,
यूं जो कहने वाले लोग है ना,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
कोई जोखिम नहीं, कोई महिमा नहीं
कोई जोखिम नहीं, कोई महिमा नहीं"
पूर्वार्थ
ग़ज़ल सगीर
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
*पाते किस्मत के धनी, जाड़ों वाली धूप (कुंडलिया)*
*पाते किस्मत के धनी, जाड़ों वाली धूप (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
*संवेदना*
*संवेदना*
Dr .Shweta sood 'Madhu'
अवध में राम
अवध में राम
Anamika Tiwari 'annpurna '
बिना वजह जब हो ख़ुशी, दुवा करे प्रिय नेक।
बिना वजह जब हो ख़ुशी, दुवा करे प्रिय नेक।
आर.एस. 'प्रीतम'
नव वर्ष हैप्पी वाला
नव वर्ष हैप्पी वाला
Satish Srijan
यही सच है कि हासिल ज़िंदगी का
यही सच है कि हासिल ज़िंदगी का
Neeraj Naveed
अगर प्रेम है
अगर प्रेम है
हिमांशु Kulshrestha
5 दोहे- वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई पर केंद्रित
5 दोहे- वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई पर केंद्रित
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
हैं जो कुछ स्मृतियां वो आपके दिल संग का
हैं जो कुछ स्मृतियां वो आपके दिल संग का
दीपक झा रुद्रा
मां शैलपुत्री
मां शैलपुत्री
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
अधूरा प्रयास
अधूरा प्रयास
Sûrëkhâ
शादाब रखेंगे
शादाब रखेंगे
Neelam Sharma
2957.*पूर्णिका*
2957.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ग़ज़ल (गुलों से ले आना महक तुम चुरा कर
ग़ज़ल (गुलों से ले आना महक तुम चुरा कर
डॉक्टर रागिनी
हम क्यूं लिखें
हम क्यूं लिखें
Lovi Mishra
विषय:गुलाब
विषय:गुलाब
Harminder Kaur
DR ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
शब्द केवल शब्द नहीं हैं वो किसी के लिए प्राण हैं
शब्द केवल शब्द नहीं हैं वो किसी के लिए प्राण हैं
Sonam Puneet Dubey
श्री कृष्ण
श्री कृष्ण
Vandana Namdev
कोंपलें फिर फूटेंगी
कोंपलें फिर फूटेंगी
Saraswati Bajpai
Loading...