*अध्याय 7*
अध्याय 7
सुंदरलाल जी का परम प्रेम प्रशंसित हुआ
दोहा
परम प्रेम उसको कहो, जिसमें तनिक न स्वार्थ
सीखा जग ने इस तरह, आनंदित परमार्थ
1)
सुनकर सुंदर लाल वचन सब ही विस्मय में आए
नहीं किसी से यह परिभाषा परम प्रेम की पाए
2)
यह है परम प्रेम जो सुंदर लाल बताते जाते
धन्य-धन्य यह परम प्रेम, आत्मा महान जो पाए
3)
जग में दुर्लभ परम प्रेम के महा तत्व का पाना
संभव केवल किसी पूर्ण योगी का यह बतलाना
4)
स्वार्थ भाव में घिरा प्रेम ही जग में देखा जाता
कौन पिता का प्रेम दे रहा अगर न सुत का नाता
5)
अगर जुड़ा संबंध पुत्र का सब कुछ दे जाएगा
देगा केवल तभी पुत्र जब अपना कहलाएगा
6)
सभी देवता बोल उठे आकाश-गर्जना आई
केवल सुंदर लाल प्रेम परिभाषा तुमसे पाई
7)
परम प्रेम के तुम अभिलाषी परम प्रेम के नायक
परम प्रेम की दिव्य अवस्था परम प्रेम सुखदायक
8)
परम प्रेम में सदा विचरते परम प्रेम तुम करते
परम प्रेम के भाव अलौकिक तुम में सदा उमड़ते
9)
इस जग को यह देन तुम्हारी अमर तत्व पाएगी
परम प्रेम की यह परिभाषा अद्भुत कहलाएगी
10)
जो भी इसे सुनेगा देखेगा स्मरण करेगा
परम प्रेम के पथ पर निश्चय आगे अटल बढ़ेगा
11)
सुनी कटोरी देवी ने आकाश गर्जना पाई
कली-कली मन के मयूर की उनकी खिल-खिल आई
12)
धन्य भाग्य हैं जो समधी साक्षात देवता पाए
परम प्रेम के भाव अलौकिक जिस में दिखे समाए
13)
परम प्रेम का वह उच्च अवस्था जहॉं ईश आते हैं
परम प्रेम वह भक्ति जहॉं पर ईश्वर मिल जाते हैं
14)
कहॉं मनुष्यों के जीवन में परम प्रेम आ पाता
परम प्रेम है दिव्य भाव, कब जग का इससे नाता
15)
कोई लाखों में इस जग में स्वार्थ रहित जीता है
कोई-कोई परम प्रेम इस अमृत को पीता है
16)
सुंदरलाल गोद में यह जो राम प्रकाश पलेगा
धन्यवाद यह परम संत की उंगली पकड़ चलेगा
17)
बिना देर अब किए कटोरी देवी आगे आईं
बोलीं सुंदर लाल ओर मुख किए हुए हर्षाईं
18)
“इस बालक के पालन के बस एक आप अधिकारी
धन्यवाद जो आप ले रहे इसकी जिम्मेदारी
19)
इसे आपके संरक्षण में संस्कार आएंगे
पलते बालक जहॉं गोद में वैसे गुण पाएंगे
20)
राम प्रकाश अबोध बोध यह परम प्रेम पाएगा
संग आपके रहा आपके जैसा हो जाएगा
21)
खुशी-खुशी समधी जी इसको आप गोद ले जाऍं
खुश होगा यह इसे खिलाकर गोदी में सुख पाऍं”
दोहा
स्वार्थ-रहित होती सदा, परम प्रेम में बात
उजला-उजला दिन यहॉं, काली कभी न रात