*अध्याय 12*
अध्याय 12
पवित्र भावों से सुंदर लाल इंटर कॉलेज की स्थापना
दोहा
जन्म मरण है देह का, सौ-सौ इसके नाम
सीखो जीवन की कला, हो जाओ निष्काम
1)
करो नियंत्रण खुद पर मन पर काबू पाना सीखो
मानो सुंदर लाल कह रहे संयम लाना सीखो
2)
याद रखो मैं सदा तुम्हारे आसपास ही रहता
अब तक था साकार देह में निराकार अब बहता
3)
अब मैं ज्योतिपुंज हूॅं ऊर्जा हूॅं मैं अब अविनाशी
वही ज्योति हूॅं जिससे जगमग धाम अयोध्या-काशी
4)
याद करो वह सत्य तुम्हें जो था हर रोज बताता
ईश रच रहा रोज जगत को, फिर हर रोज ढहाता
5)
क्यों रोते हो अरे देह तो सबकी आनी-जानी
नहीं तुम्हारी भी काया यह दिन ज्यादा रह पानी
6)
जग में जो आया है उसको एक दिवस जाना है
जन्म ले रहा आज जो मरण कल उसको पाना है
7)
इसलिए शोक से उबरो, शाश्वत सत्पथ पर बढ़ जाओ
परम प्रेम का करो स्मरण, परम प्रेम में आओ
8)
ताऊ सुंदर लाल स्वर्ग से जब उपदेश सुनाते
राम प्रकाश युवक सुन-सुनकर आनंदित हो जाते
9)
याद उन्हें आते वे पल जो ताऊ संग बिताए
अरे-अरे नव निधि के सुख थे यह जो मैंने पाए
10)
सुंदर लाल सदा मुझसे नि:स्वार्थ प्रेम करते थे
सदा कामना-रहित मार्ग पर वह निज पग धरते थे
11)
लगे सोचने काम किस तरह क्या ऐसा कर जाऊॅं
ताऊ सुंदरलाल रूप साकार सर्वदा पाऊॅं
12)
करुॅं समर्पित तन मन धन जो सारा उनसे पाया
करूॅं आरती उस विचार की जो सब उनसे आया
13)
स्मारक साकार देवता का कुछ ऐसा आए
भक्त बनूॅं मैं और देवता उसमें बैठा पाए
14)
बहुत सोच निर्णय ले विद्यालय रचना की ठानी
यही रहेगी ठीक स्मरण रीति प्रीति यह जानी
15)
फिर क्या था भूखंड खरीदा विद्यालय बनवाया
सुंदरलाल नाम विद्यालय का सुंदर लिखवाया
16)
विद्यालय यह नहीं इमारत ईंटों का यह घर था
यह था परम प्रेम का मंदिर, यह पूजा का स्वर था
17)
परम प्रेम में अर्पण है प्रेमी सर्वस्व लुटाता
परम प्रेम का पथिक भक्ति में डूब-डूब बस जाता
18)
परम प्रेम वह भक्ति जहॉं है अहम् विसर्जन पाता
अहंकार तृण मात्र भक्त में नजर कहॉं है आता
19)
खुद को भूला परम प्रेम के पथ पर वह चल पाया
मन में बसा देव बस वंदन सिर्फ देव का गाया
20)
यह ताऊ का परम प्रेम था संबल बनकर आया
परम प्रेम ने परम प्रेम की पूॅंजी ही को पाया
21)
यह जो राम प्रकाश युवक ने परम प्रेम निधि पाई
जैसे बीज खेत में खेती सौ-सौ गुना बढ़ाई
22)
करते थे निष्काम कर्म बदले की चाह न आई
नहीं कमाया धन ज्यादा पुण्यों की करी कमाई
23)
जीवन सादा सदा सादगी से आजीवन रहते
कभी न कड़वे वचन जगत में किसी एक को कहते
24)
नहीं शत्रु था उनका कोई, मित्र भाव ही पाया
अहंकार से मुक्त, नम्रता के पद को अपनाया
25)
यह चरित्र दो युग पुरुषों का परम प्रेम को गाता
यह चरित्र जो कहता-सुनता परम प्रेम को पाता
26)
धन्य-धन्य जो गाथा दो युग-पुरुषों की गाऍंगे
परम प्रेम में वे डूबेंगे, परम तत्व पाऍंगे
दोहा
भीतर मुरली बज रही, भीतर बसा उजास
परम प्रेम में स्वार्थ का, किंचित कब आवास
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