अधूरे सपने….
अधूरे सपने
मौसम बदल रहा है,
समय बीत चुका है,
दिन भी लगभग वहीं हैं शायद तारीख़ में हेर-फेर लग रहा है, सही तारीख़ का पता नहीं लेक़िन यक़ीन है कि यही दिन रहे होंगे क्योंकि इस समय भी शहर में नुमाईश चल रही है । उस दिन भी मैं ओर तृष्णा एक साथ नुमाईश में घूमे थे, बहुत हँसी-ठिठोली के साथ हमारा वो दिन गुजरा था ।
ब्रेक डाँस झूला, वोटिंग, ड्रैगन झूला, और शाम को अंत में कवि सम्मेलन में कवियों की एक से बढ़कर एक , प्रेम पर आधारित, श्रृंगार रस से ओतप्रोत कविताओं ने तो हमारी शाम को ओर सुहाना बना दिया था ।
तेरे पलकों पे सारे जहाँ की रोशनी आ जाये,
रोशन हो वह हर शाम मेरी….
लवों पे तेरे हसीन मुस्कान आ जाये… (मैं गुनगुनाते हुए )
तृष्णा- आज क्या हुआ बहुत ख़ुशमिज़ाज लग रहे हो…
बस यूँ ही जुबाँ पर कुछ शब्द आ गए…
सोचा उन्हें तुम्हें समर्पित कर दूँ….( मैंने चेहरे पर मुस्कान लेते हुए तृष्णा के उत्तर का जबाब दिया)
तृष्णा- वाह…क्या बात…शायरी के बाद बातों का अंदाज़ भी शायराना…
चलो छोड़ो सारी बातें ये बताओ आगे की क्या प्लानिंग है, कुछ बात हुई घर पर किसी से या फ़िर नहीं (मैंने तृष्णा से पूछा)
तृष्णा- कोई भी मेरी बात सुनने को तैयार नहीं है, सभी लोग मना कर रहे हैं सिर्फ़ पापा को छोड़कर …..लेक़िन पापा भी कभी-कभी मना करने लगते हैं ।
फ़िर मेरा क्या…क्या होगा मेरा……
मैं कुछ भी नहीं हूँ तुम्हारे लिए…
कोई अहमियत नहीं है मेरी तुम्हारी नजरों में…क्यों नहीं समझते तुम्हारे परिवार वाले …आख़िर वो क्या चाहते हैं …( मैंने तृष्णा से एक साथ असंख्य सवाल कर दिए )
तृष्णा – ऐसी बात नहीं है …राज…..
तुम हमेशा नकारात्मक क्यूँ हो जाते हो…क्यों इतनी जल्दी सब पर अपना गुस्सा दिखाते हो…
ऐसा कुछ नहीं है……
मैं किसी पर गुस्सा नहीं हो रहा हूँ…मुझे गुस्सा तो ख़ुद पर ही आ रहा है…कि ऐसा क्या करूँ जिससे तुम्हारे परिवार वालों को मैं पसंद आ जाऊं …(मैंने अपने मन की झुंझुलाहट को तृष्णा के समक्ष दर्शाया )
तृष्णा – चलो अब अपना गुस्सा ठंडा करो…एकदम तुम्हारा मूड बदल जाता है…
अभी दो मिनट पहले तो शायराना अंदाज़ था और तुरंत गुस्से में आ गए…..
अपना मूड ठीक करो और घर चलो अब बहुत समय हो गया सब लोग घर पर इंतज़ार कर रहे होंगे ।
मैं तृष्णा का दूर का रिश्तेदार था सो घर आना -जाना अक्सर लगा रहता था । इसलिये उस रोज़ भी रात्रि को तृष्णा के साथ घर चला गया ।
वक़्त बहुत हो चुका था नुमाइश में ही कुछ हल्का -फुल्का खा लिया था सो घर पहुँचकर खाने का मन ही नहीं किया । तृष्णा की भाबी ने उस दिन मेरा मनपसंद खाना ( कड़ी-चावल) बनाया था ।
बिना खाये रहा नहीं गया सो थोड़ा सा मँगा लिया खाने को…
तृष्णा के घर रात का खाना अक़्सर 10 बजे के आसपास होता था ,आज समय कुछ ज़्यादा ही हो गया था…
खाने की मेज पर वार्तालाप…———
तृष्णा के पापा- राज क्या सोचा है अब शादी के बारे में….
भाई अब तो आपकी नौकरी भी लग गयी…..
अच्छी खासी सेलरी मिल रही है…घर पर मम्मी-पापा भी अब चिन्ता मुक्त हो चुके हैं…
(इस तरह तृष्णा के पिताजी की तरफ़ से बहुत से सवाल एक ही साथ उठे ….)
पता नहीं पापा अभी दो- तीन जगह से भैय्या जी की बात हुई लेक़िन कोई बात नहीं बनी शायद …..
मेरी तो कोई बात नहीं हुई भैया जी से इस बारे में… देखते हैं क्या होता है……
आपकी तबियत कैसी है आजकल…( मैंने एक लाइन में ही सवालों का उत्तर देते हुए बात को दूसरे मुद्दे की तरफ़ मोड़ने की कोशिश की )
तृष्णा के पापा- दवाई चल रही है । ये बीमारियाँ तो ऐसी हैं जबतक दवाइयाँ खाओ तब तक फ़ायदा दिखेगा,
जैसे ही आपकी दवाई बन्द …बीमारी अपना असर दिखाना शुरू कर देगी ।
मेरी प्लेट से कड़ी – चावल ख़त्म हो चुके थे सो मैंने खाने की मेज से हटना ही उचित समझा ।
अब मैंने हाथ धोकर सोने की तैयारी कर ली थी सो मैं गेस्ट रूम में सोने चला गया सबको रात्रि वंदन करने के पश्चात …
सुबह हो चुकी थी…
बराबर की गली से दोपहिया वाहनों के हॉर्न की आवाज़ आ रही थी । मैं जाग चुका था..बाकी लोग भी अपने-अपने विस्तरों में जाग चुके होंगे इसलिये किसी के खाँसने की आवाज़…किसी की बुदबुदाहट सुनाई दे रही थी…
मैं नित्य दिनचर्या से फ़ारिख हो चुका था..नहाने की तैयारी कर रहा था …तभी तृष्णा की आवाज़ सुनाई दी…उसने चाय बना ली थी…पापा को चाय देने के बाद गेस्ट रूम में चाय रखकर मुझसे चाय के लिए बोला….
तृष्णा – चाय रखी है रूम में…आपकी…चाय पी लो फ़िर नहा लेना… चेहरे पर मुस्कराहट लाते हुए…
मैंने सिर हिलाते हुए हामी भरी व चाय पीने के लिये गेस्ट रूम में फिर से चला गया । चाय पीने के बाद नहाकर मैं अपने गंतव्य के लिये निकल पड़ा ।
सप्ताह भी नहीं बीत पाया होगा कि तृष्णा का फ़ोन अचानक से शाम के समय आया …
हेलो…(फ़ोन उठाते हुए)
तृष्णा – क्या कर रहे हो..
कुछ नहीं बस ऐसे ही बैठा था …अभी ऑफिस से आया हूँ…
( आज मुझे मन भी बहुत ख़ुशी हो रही थी..मैं मन ही मन मुस्करा रहा था क्योंकि बहुत दिनों बाद तृष्णा ने मुझे फ़ोन किया था… अक़्सर मैं ही कॉल किया करता था ।)
तृष्णा – अब आप मेरे बिना रहने की आदत डाल लो…क्योंकि आप मेरे घर किसी से बात करोगे नहीं ओऱ यहाँ मेरी बात कोई सुनता नहीं ।
क्या हुआ कुछ बताओगी या फ़िर ऐसे ही ग़ुस्सा होती रहोगी..(मेरे चेहरे का रंग फीका पड़ चुका था क्योंकि उसकी आवाज़ में रुआँसापन महसूस हो रहा था )
तृष्णा -अब मुझे नहीं रहना यहाँ …..
या तो तुम बात करो…या फ़िर मैं तुम्हारे पास आ जाती हूँ….
या फ़िर तुम मुझे यहाँ से ले जाओ…
मैं बहुत प्यार करती हूँ तुमसे…I Love You Raj…
तुम्हें क्या लगता है कि मैं तुमसे प्यार नहीं करता …..(मैंने जबाब दिया)
क्या मैं तुम्हें नहीं चाहता….लेक़िन समय देखो ..इस समय कोई भी कदम मत उठाना…थोड़ा सा समय दो मुझे में सब ठीक कर दूँगा…(मैंने तृष्णा को समझाया)
लगभग बीस मिनट तक हम आपस में बातचीत करते रहे…ओऱ फ़िर मैंने तृष्णा को आराम करने के लिये बोला ।
जाओ आराम करो ..बाद में बात करते हैं मैं भी फ़िलहाल ऑफिस से आया हूँ , थका हुआ हूँ…ओके बाय …
तृष्णा -ह्म्म्म …बाय-बाय …love you…
आज लगभग वही दिन होगा शायद……
लेकिन उसकी यादों के झरोखे से बाहर आना बहुत मुश्किल हो रहा है । मैं जाने-अनजाने में लगभग उन्ही यादों में पहुँच जाता हूँ जैसा कि मैं तृष्णा के साथ उस समय घुमा था ।
समय की चाल ऐसी थी,
न आहट मुझको होने दी ।
मैं न हो सका उसका,
मिली न वो मुझको जो मेरी थी ।।
वक़्त-बेवक़्त तू मुझको,
यूँ ही याद आती है,
तुझे क्या अच्छा लगता है,
जो मुझको पल-पल सताती है ।
अब समय बीत चुका है न तो अब वो मुझको याद करती है और न ही मुझे दिलचस्पी उसमें व उसके व्यवहार में । उसने मुझे कहीं का न छोड़ा था, किसी अजनबी के साथ बीच रास्ते में मुझे छोड़कर वो अपनी राह चली गयी थी ।
ए फ़ूल अन्जान यूँ न बन अपनी ही कली से,
वरना एकदिन तू अकेला पैरों तले कुचला जाएगा ।
अब हम शादीशुदा हैं और वह भी एक बच्चे की माँ बन चुकी है । हम अपनी जिंदगी को अपने परिवार के साथ खुशी से गुज़ार रहे हैं । अपने परिवार के साथ खुश हैं । वह भी अपने परिवार के साथ अपना ख़ुशी से जीवन यापन कर रही होगी ऐसा हमारा अनुमान है । आज आठ साल हो गए हैं लगभग उससे बिछड़े हुए । न अब उसकी याद आती है न कभी उसका फ़ोन आता है । अब सिर्फ़ उससे व उसके नाम से नफ़रत है क्योंकि उसने हमसे मुँह मोड़ा था । कई मर्तवा बात करने के बाद भी उसकी तरफ से सिर्फ़ ना जबाब मिला ।
आज फ़िर बहुत दिनों बाद अचानक उसका फ़ोन आया,…
उसकी आवाज भी कुछ रुआँसी लग रही थी…उसकी रोती हुई सी आवाज सुनकर मेरे चेहरे का रंग भी बदल सा गया था ।
हेलो….(तृष्णा रोती हुई आवाज़ में)
मुझे समझ नहीं आया कि मैं क्या कहूँ…….
क्या हुआ…कुछ बताओगी…कि नहीं या फिर ऐसे ही रोती रहोगी ।
तृष्णा – कुछ नहीं बस ऐसे ही याद आ रही थी …तो सोचा बात कर लूँ ।
वो कुछ कहना चाह रही थी लेकिन बहुत कुछ छुपा रही थी ।
हमने बहुत देर तक पूछा लेकिन कुछ नहीं बताया । मेरे पूछे सवालों क़भी इधर की बातें कभी उधर की बातों में उलझाकर टालती रही लेक़िन कुछ नहीं बताया । क़रीब 20 मिनट बातें करने के बाद उसने बाय-बाय कह दिया ।
उसकी बाय-बाय मेरे लिए आखिरी बाय-बाय हो गयी न जाने क्यूँ उसने मुझे फ़ोन किया ,क्यों वो रो रही थी , क्यूँ उसने मुझे कुछ नहीं बताया । आख़िर क्यूँ……