अधूरे उत्तर
अधूरे उत्तर
कर्ण सैट की परीक्षा देने के बाद दो महीने के लिए दादाजी के पास गाँव आया था । उसके पिता पिछले कई वर्षों से वर्जीनिया में थे और चाहते थे कि अंडरग्रैड की पढ़ाई शुरू करने से पहले वह कुछ समय अपने पुश्तैनी गाँव में दादाजी के साथ बिताये और अपने जीवन के दृष्टिकोण का विस्तार करे ।
दादाजी पूना विश्वविद्यालय के फ़िज़िक्स विभाग के रिटायर्ड विभागाध्यक्ष थे । दादी के जाने के बाद वह सतारा के पास अपने गाँव आ गए थे , कुछ विशेष नहीं करते थे , बस लंबी सैर, दोपहर को सोना , टेलीविजन पर सीरियल देखना , मन हुआ तो कोई किताब पढ़ लेना, इतना ही करते थे ।
कर्ण के आने से उनमें एक नई स्फूर्ति आ गई थी , अब वह सारा दिन उससे बातें करते रहते । एक दिन वह उसके कमरे में गए तो उन्होंने देखा , वह लैपटॉप पर काम कर रहा है ।
“ शाम के समय इसके सामने क्यों बैठे हो ? “
“ यूनिवर्सिटी का फार्म भरना है । “
“ वह कल करना , अब चलो, सूर्यास्त का समय हो गया, उसे देखूँगा नहीं तो आज के सौंदर्यानुभव। से वंचित हो जाऊँगा । “
कर्ण हंस दिया , “ चलिए । “
रास्ते में दादाजी ने पूछा, “ क्या पढ़ना चाहते हो ? “
“ मैकटरानिक इंजीनियरिंग, और बाद में आरटीफिशयल इंटेलिजेंस ।”
“ क्यों?”
“ क्योंकि इसी में मेरी रूचि है । “
दादाजी बहुत देर तक चुप रहे ,फिर उन्होंने कहा, “ मनुष्य होने के अनुभव का क्या होगा?”
“ शायद वह अधिक अर्थपूर्ण हो जायेगा ।”
“ कैसे?”
“ आप मुझसे क्यों पूछ रहे हैं , आपने सारा जीवन फ़िज़िक्स पढ़ाया है, क्या विज्ञान का छात्र होने के कारण आपका नाता आसपास की प्रकृति से अधिक गहरा नहीं है ?”
“ है , परन्तु मेरा संबंध उसके सौंदर्य से नहीं बदला, मन की भावनाओं से नहीं बदला , जीवन मूल्यों से नहीं बदला ।”
कर्ण ने कहा, “ परन्तु जिस तकनीक का समय आ गया है , उसे रोका नहीं जा सकता ।”
“ क्यों ?”
“ क्योंकि यही इतिहास है, जब से कृषि का विकास हुआ है हम निरंतर बेहतर तकनीक की खोज कर रहे है , ताकि, हम अधिक सुखी जीवन जी सकें , सत्य को थोड़ा और समझ सके , तकनीक के बिना क्या यह संभव था कि हम ब्रह्मांड में पृथ्वी का स्थान समझ सकते ? क्या आप नहीं चाहते हम और अधिक सक्षम हो सकें ?” कर्ण ने उत्तेजना से कहा ।
दादाजी मुस्करा दिये , “ परन्तु इस तकनीक ने हथियार भी तो दिये है। अनेकों देशों की जीवन पद्धति का विनाश करने में सहायता की है , वातावरण को दूषित किया है , यही तकनीक तुम्हें और तुम्हारे पापा को मुझसे दूर ले गई है । “
“ पर यह तो हमेशा से होता आया है, मनुष्य अफ़्रीका से यदि न चलता तो पूरी दुनिया में कैसे फैलता ?”
“ पर वह अकेला तो नहीं चला था ?”
“ तो यह तो अच्छी बात है, आज तकनीक के सहारे मनुष्य स्वतंत्र हो रहा है ।”
दादाजी हंस दिये,” तुम्हारी आरटीफिशयल इंटेलिजेंस तुमसे अधिक इंटेलीजेंट होगी और तुम्हें स्वतंत्र रहने देगी !!! वे लोग जिनके हाथ में यह शक्ति होगी , क्या वह तुम्हें स्वतंत्र रहने देंगे ? क्या आज तक इतिहास में ऐसा हुआ है ? “
“ हम इसके लिए क़ानून बना सकते हैं ।” कर्ण ने कहा ।
दादाजी फिर हँस दिये, “ तो क्या आज हमारे पास क़ानून नहीं है ? अपराध तो फिर भी होते है । यू एन ओ है , युद्ध फिर भी होते हैं ।”
“ परन्तु ऐ आय में भावनायें नहीं होगी ।” कर्ण ने ज़ोर देते हुए कहा ।
दादाजी के चेहरे पर अवसाद उभर आया ,” अभी तुम बच्चे हो इसलिए पूरी तरह समझ नहीं रहे, उसमें भावनायें हमसे अधिक तीव्र होंगी , क्योंकि वह भी मस्तिष्क का हिस्सा है । मनुष्य स्वयं शेष प्राणियों से अधिक बुद्धिमान है, इसलिए उसकी भावनायें भी अधिक विकसित हैं, चाहे वे सकारात्मक हों या नकारात्मक हों । मनुष्य के पास जो आज तर्क शक्ति है, वह सदियों के प्रयास के बाद प्राप्त हुई है, उसकी यात्रा भावनाओं से आरम्भ हुई थी, परन्तु ऐ. आई की यात्रा तर्क से आरंभ हुई है, और वह भावनाओं तक स्वयं पहुँच जायेगा, सर्वाइवल आफ द फिटस्ट में उसका विश्वास आज के पूँजीवादियों से कम नहीं होगा, और वह हमें मनुष्य की गरिमा के साथ जीने देगा , इसमें मुझे संदेह है ।”
कर्ण कुछ देर चुप रहा , फिर उसने कहा , “ दादाजी ब्रह्मांड में एक जीवन नष्ट होता है , तो फिर नया आता है, एक बहुत बड़ा सितारा नष्ट हुआ तो सौरमंडल बना , पृथ्वी पर एक तरह का जीवन नष्ट हुआ तो नए जीवन की राह बनी , डायनासोर गए तो मैमल को जगह मिली, यही प्रकृति का नियम है , यदि आज वह समय आ गया है कि ए आय हमसे आगे निकल जाये , तो यह भय क्यों ?”
सूर्य अस्ताचल में था , आकाश की लालिमा से जुड़े दादाजी अपने ही विचारों में मग्न थे , कर्ण ने कहा, “ चलें दादाजी?”
“ हाँ चलो । उन्होंने शिला से उठते हुए कहा । थोड़ी दूर चलने के बाद उन्होंने बातचीत को फिर से जारी करते हुए कहा, “ अच्छा होता यदि हम भावनाओं को पहले उस स्तर पर ले आते , जहां व्यक्ति का जीवन स्वतंत्र होता, उसका अपने निर्णयों पर अधिकार होता , युद्ध न होते , करूणा सर्वव्यापी होती। तब हम सोचते हमें ए आय का क्या करना है , आज तो पूरा विश्व हथियारों की ख़रीद फ़रोख़्त में व्यस्त है , किसके पास फ़ुरसत है, वह सोचे मनुष्य का अगला कदम क्या होना चाहिए ? वह तो बस चल रहा है , अंधकार में , अपने अहम के पीछे, अपनी व्यक्तिगत ताक़त बढ़ाते हुए ।”
दोनों घर पहुँच गए तो कर्ण ने कहा , “ दादाजी मुझे फार्म भरना है , बिना इस तकनीक को समझे , न मैं इसके विरोध में बोल पाऊँगा, न पक्ष में ।”
“ हाँ हाँ , जाओ तुम , और निर्भय होकर रहो । “
“ जी दादाजी । “ कर्ण मुस्करा दिया ।
कर्ण चला गया तो दादाजी के हाथ स्वतः ही जुड़ गए, और कहा, “ ओउम शांति, शांति, शांति ओउम ।”
—- शशि महाजन
Sent from my iPhone