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9 Aug 2016 · 5 min read

अधूरी सी कहानी तेरी मेरी – भाग ८ (अंतिम भाग)

अधूरी सी कहानी तेरी मेरी – भाग ८
गतांक से से …………अंतिम भाग

अगले रविवार का सोहित ने बड़ी बेसब्री से इन्तजार किया | सुबह के लगभग ९ बजे तुलसी को फ़ोन लगाया, मगर तुलसी का फोन नहीं उठा | सोहित का मन बैठ गया | दो तीन बार और कोशिश की मगर सब बेकार | फिर सोहित ने अपने साप्ताहिक रूटीन के हिसाब से अपने घर फ़ोन पर बात की फिर एक दो दोस्तों को फ़ोन लगाया और अपने खाने की व्यवस्था करने में लग गया | घर के सारे काम निपटाते हुए लगभग एक बज गया | सोहित ने फिर से तुलसी को फ़ोन लगाया |

तुलसी : हेल्लो सर, नमस्ते |
सोहित : नमस्ते तुलसी , कैसी हो ?
तुलसी : अच्छी हूँ, आपने जब कॉल की थी मैं घर के काम कर रही थी और फ़ोन मेरे रूम में चार्जिंग के लिए रखा हुआ था |
सोहित : ओके | मैंने तुमसे कुछ कहा था तुलसी ? और तुमने आज उत्तर देने के लिए बोला था ?
तुलसी : हाँ सर, मैं आपको पसंद करती हूँ, आप मुझे बहुत अच्छे लगते हो | लेकिन मैं आपसे प्यार नहीं कर सकती |
सोहित : क्यों ? आखिर क्या कमी है मुझमें ? मैं तुम्हे पसंद करता हूँ, तुम मुझे पसंद करती हो | बस यही तो चाहिए होता है एक दूसरे को प्यार करने के लिए | तुम मुझे जानती भी हो, ऐसा भी नहीं है कि हम अनजान हैं |

तुलसी : सिर्फ इतना ही तो जानती हूँ कि आप मेरे सर हो और आपकी हंसी बहुत अच्छी है | इसके अलावा मैं आपके बारे कुछ नहीं जानती |
सोहित : मेरा व्यवहार भी तो जानती हो | जैसा व्यवहार तुम लोगों के साथ है मेरा सामान्य व्यवहार भी वैसा ही है | कोई ऐसा वैसा शौक मुझे नहीं है | बाकी मेरे बारे में जो पूछना चाहो पूछ सकती हो |

तुलसी : मुझे कुछ नहीं पूछना सर | बस ये जान लीजिये कि मैं आपसे प्यार नहीं कर सकती |

सोहित : ठीक है, पर मेरी दोस्त तो बनी रहोगी न ? मुझसे बात तो करोगी न ?
तुलसी : हाँ, बात कर सकती हूँ |

तुलसी, सोहित को हाँ कहना चाहती थी, लेकिन अपने उस सरफिरे दोस्त के कहने पर उसने सोहित को इनकार कर दिया | सोहित को न कहते हुए कितनी उदास थी तुलसी, उसका मन कितना रो रहा है, सिवाय उसके और कोई नहीं जान सकता था | इस घटना के बाद सोहित और तुलसी की सिर्फ एक बार और मुलाक़ात हुई | दोनों की बातें बदस्तूर जारी रही | और फिर अंतिम मुलाक़ात के २-३ महीनों के बाद ही सोहित और तुलसी के बीच किसी बात को लेकर ग़लतफहमी आ गयी | सोहित ने तुलसी से बात करने की कोशिश की लेकिन उसने सोहित से बात ही नहीं की | तुलसी को लगता था कि सोहित गलत है और उसने सोहित को अपनी सफाई में कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया | सोहित ने एक दो बार और बात करने की कोशिश की लेकिन तुलसी ने कोई तवज्जो नहीं दी | तुलसी ने भी अपने दिल पर पत्थर रख लिया और सोहित को पलट कर कभी कोई फ़ोन नहीं किया |

सोहित तुलसी को इतना प्यार करता था कि उसने कभी तुलसी का नंबर कभी सेव ही नहीं किया | तुलसी का नंबर तो सोहित के दिल में ही अंकित था | लगभग ३ साल बाद २०१४ में सोहित ने यूँ ही तुलसी का फ़ोन डायल किया, उधर से तुलसी की खनकती हुई आवाज सुनते ही सोहित ने कहा :

सोहित : कैसी हो तुलसी ? पहचान लिया मुझे ?
तुलसी : मैं बहुत अच्छी हूँ सर | आपको कैसे भूल सकती हूँ ! बिकुल पहचान लिया, सोहित सर बोल रहे हैं न ?
सोहित : बिलकुल ठीक | क्या हो रहा है आजकल ?
तुलसी : कुछ खास तो नहीं, बस वही अपनी नौकरी चल रही है, अब सर्वे के काम कुछ कम होते हैं, आपके जाने के बाद से |

इस बातचीत के बाद अबकी बार सोहित ने तुलसी का नंबर सेव कर लिया, क्योकि बिना नंबर सेव किये ये पता थोड़े ही लगता कि तुलसी व्हाट’स अप्प का प्रयोग करती है या नहीं | सोहित की अच्छी किस्मत से तुलसी व्हाट’स अप्प का प्रयोग कर रही थी | जैसी ही सोहित ने तुलसी को मैसेज किया तुलसी का तुरंत रिप्लाई आया | दोनों की चैट पर बात होने लगी और फिर धीरे धीरे फ़ोन कॉल्स पर भी | दोनों का पुराना प्रेम फिर से दोनों के दिलों में हिलोरे मारने लगा |

पिछले तीन सालों में दोनों की ही ज़िन्दगी में बहुत उथल पुथल मची थी, दोनों ही बहुत परेशान रहे थे | दोनों में तमाम गिले शिकवे हुए | दोनों ने ही एक दूसरे को अपनी पिछले तीन सालों की आपबीती सुनाई जिसको सुनकर दोनों ही भावुक हो गए | गत तीन वर्षों में तुलसी अकेली ही ज़िन्दगी की जंग लड़ रही थी , उस सिरफिरे ने तुलसी की ज़िन्दगी को नरक बना दिया था | तुलसी उससे कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहती थी लेकिन अब वो अपनी हदें पार करता हुआ अपनी असलियत पर आ चुका था | तुलसी के साथ असभ्य व्यव्हार करने लगा था | एक दिन तो उसने अपने हदें ही पार करते हुए तुलसी के ऑफिस में आकर उससे बदतमीजी की जिसका तुलसी ने उसको अच्छे से सबक सिखाया | मगर कुछ था जो तुलसी के भीतर दरक रहा था . कहीं न कहीं सोहित को न पा सकने की विवशता उसको परेशान करती थी |

सोहित की ज़िन्दगी में दो नए मेहमान आ चुके थे | अब तुलसी और सोहित का मिलन तो संभव नहीं था, लेकिन दोनों के दिलों में एक दूसरे के लिए प्यार भी कम नहीं था | और दोनों ने अपने दिल की भावनाओं को इस बार दबाया नहीं, बल्कि एक दूसरे के सामने खुलकर जाहिर कर दिया | जब सोहित को पता लगा कि एक सिरफिरे के कहने पर तुलसी ने सोहित के प्यार को ठुकरा दिया था तो सोहित के दिल को बहुत चोट लगी | मगर सोहित तुलसी से कहता भी तो क्या, तुलसी खुद ही सोहित को ठुकराकर पछता रही थी |

दोनों का प्रेम तो अब ही था, लेकिन सोहनी महिवाल, हीर – रांझा के जैसा था, दोनों में प्यार तो अथाह था बस मिल नहीं सकते थे | दोनों अब भी मिलते थे एक दूजे से प्रेमियों की तरह, सच्चे दोस्तों की तरह | एक दूजे के सुख दुःख बांटते थे और ज़िन्दगी को सम्हाल कर जीने की सलाहें दिया करते थे | एक दूजे से हमेशा के लिए न मिल पाने की कसक तो दोनों के दिलों में रहती है, कभी कभी तो जुबां तक भी आ जाती है | लेकिन दोनों अपनी मर्यादाओं को जानते और समझते थे | दोनों कभी कभी बहक भी जाते थे और बहकी बहकी बातें भी करते थे लेकिन ऐसा कभी एक साथ नहीं होता था | अगर दोनों ही एक साथ बहक जाते तो दोनों भावनाओं में भावनाओं में ही बह जाते |

सच ही है, “सच्चा प्रेम कभी मरा नहीं करता गुजरते वक़्त के साथ धूल की परतें जरूर जम जाती हैं, लेकिन एक रूमानी सा हवा का झोंका उस परत को एक झटके में उतार फेंकता है | सच्चे प्रेमियों का सामाजिक रूप से भले मिलन न हो, रूहों को मिलने से भला कौन रोक पायेगा |”
(सन्दीप कुमार)

सोहित :

काश सुन लेता में तेरी खामोशी को
पढ़ लेता तेरे लबों में दबे शब्दों को
आज की तरह मजबूर न होते हम
पास होकर भी इतनी दूर न होते हम

तुलसी :

काश पहचान ली होती तेरी नजरें
देख लिया होता प्यार तेरे दिल का
हमसफ़र बन ज़िन्दगी हसीन बनाते
मधुर किलकारियों से घर द्वार सजाते
मैं तेरी हो जाती तू सिर्फ मेरा हो जाता
तुम और मैं दोनों मिलकर हम हो जाते
अलग अलग दुनिया में जीते हैं हम दोनों
दोनों मिलकर अपनी नयी दुनिया बसाते

सन्दीप कुमार
०८.०८.२०१६

Language: Hindi
6 Comments · 814 Views
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