अधूरा मुजस्सिमा
कैसे हो भला ख्वाबों की ताबीर ,
हर बार मुजस्सिमा अधूरा रह जाता है ।
जो भी रंग चुनूं अरमानों के इसमें भरने को ,
सब आसुओं में बह जाता है।
कैसे हो भला ख्वाबों की ताबीर ,
हर बार मुजस्सिमा अधूरा रह जाता है ।
जो भी रंग चुनूं अरमानों के इसमें भरने को ,
सब आसुओं में बह जाता है।