अधूरा प्रेम प्रस्ताव
********** अधूरा प्रेम-प्रस्ताव (लघु कहानी) *************
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बात उन दिनों की है जब मदन आगरा महाविद्यालय् मे बतौर प्रवक्ता हिंदी विषय का अध्यापन कार्य करता था।उस दौरान वह शौकिया कविता,कहानी,गजल इत्यादि लिखा करता था और समय समय पर उनके द्वारा लिखित रचनाएं प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं पत्र पत्रिकाओं मे निरंतरता पर प्रकाशित होती रहती थी।कई साँझा काव्य संग्रह मे भी उनकी रचनाओं को शामिल किया गया था।लेकिन अब वह इस कार्य से भी ऊब गया था।लेकिन वह सोशल मीडिआ फेसबुक पर कुछ न् कुछ लिख कर छोड़ दिया करता था।यह सब उनकी दैनिक क्रिया का अभिन्न अंग बन गया था।
अचानक एक दिन उनके पास किसी अंजान साँझा काव्य संग्रह संयोजिका द्वारा उनकी किसी किताब मे कुछ शुल्क के साथ प्रतिभागी बनने का आमंत्रण दिया,लेकिन उन्होंने इस संदेश की और कोई ध्यान ही नहीं दिया और बात आई गई हो गई।एक दिन मोबाइल पर अज्ञात नम्बर की घंटी बजी। उसने कॉल उठाया और सामने एक मिश्री भरी मधुर आवाज को सुनकर मंत्रमुग्ध हो गया और यकायक बिना इरादान् उसकी मधुरिम ध्वनि की ओर आकर्षित हो रहा था और ये मधुर आवाज उस कंठ से निकली थी, जिसका उसको किताब मे प्रतिभाग लेने हेतु प्रस्ताव आया था।उसने अपना नाम मोहिनी बताया था।…और सहर्ष उसने उसकी ध्वनि से प्रभावित होकर उसके निवेदन को स्वीकार कर लिया था।
न् जाने मदन क्यूँ उसकी ओर आकर्षित होने लगा और अपने ख्यालों,ख्वाबों मे उसे सोचने लगा और अपनी परिकल्पना मे उसे विश्वामित्र की तपस्या भंग करने वाली मेनका से भी सुंदर सुंदरी की कल्पना करने लगा।
और एक दिन जब उसका फोन आया तो उसने उसके छायाचित्र को देखने की जिद्द की । बार बार के प्रतिवेदन के बाद जब उसने अपना छायाचित्र भेजा तो वह उस सौन्दर्य की मूर्ति को देखकर स्तब्ध रह गया और उसे देखता ही रहा।उसे लगा जैसे स्वर्ग से कोई अप्सरा स्वर्ग से धरती पर विचरण करने हेतु उत्तरी हो।उसकी बोलती पूर्णता बंद हो गई और वह उसकी सुंदरता मे वशीभूत होकर नेस्तनाबूद हो गया।शादीशुदा होने के बावजूद भी इश्क के खुमार मे बीमार होकर उसके दिल के प्रेम अस्पताल मे दाखिल होने की जिद्द करने लगा।उसके इस बेवकूफी भरे प्रस्ताव को सुनकर मोहिनी खिलखिलाकर जोर जोर से हँसते हुए कहने लगी कि अरे महोदय वह तो पहले से ही किसी और के सपनो की रानी है,मतलब की पहले से ही शादीशुदा है। और वह हर जन्म मे अपने पति को ही पति और प्रेमी मे देखना चाहती है।लेकिन मदन की जादुई भरी प्रेम की बातों ने सपेरे की भांति कील कर रख दिया था।
बेशक मदन के प्रस्ताव को मोहिनी की ओर से कोई स्वकृति नहीं मिली,परन्तु मोहिनी उसके व्यवहार और आदर सत्कार से बहुत प्रभावित हुई,लेकिन मदन समझदार,विद्वान होने के बावजूद भी न् चाहते हुए इश्क की गली मे कहीं खो गया था,लेकिन फिर भी उसने अपने ढंग से अपनी और से प्रेम प्रस्ताव तो दे ही दिया था ,बेशक वो वो चाहे हर पल हर दम हर जन्म अधूरा ही रहे,लेकिन उसने अपने मन की भावनाओं से अपनी प्रेमिका को परिचित करवा दिया था,और वह मुंगेरी लाल
सरीखे हसीन सपने दिन रात खुली व बंद आँखों से देख देख कर अपना शेष जीवन जी रहा था।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ु राओ वाली (कैथल)