अधूरापन
अधूरेपन में पूरे हैं , हम कहाँ अधूरे हैं
मौजों के झूले हैं , सपने चाहे अधूरे हैं
मकान पर मजबूर छतों की चाहत में
हम सूरज चन्दा सितारे आनन को भूले हैं
मिलता नहीं मैं कभी ख़ुद से
ये कुछ अधूरा अपना है
जो में खोजता जाने कबसे मैं
डा राजीव “सागरी”