” अधरों पर मनुहार है ” !!
गीत
बरस गये हैं जम के बदरा ,
बरखा संग बहार है !!
पुलक रही है धरा हरित हो ,
खुशियों का त्यौहार है !!
चेहरे की रंगत बदली है ,
हाथों में अब काम है !
ठंडी ठंडी हवा सुहाती ,
वहीं सुहाती घाम है !
रोप रहे हैं धान खेत में ,
गीतों की झंकार है !!
धरती फूली नहीं समाये ,
अंग अंग मुस्कान है !
जन जीवन की प्यास बुझी है ,
बूढ़े हुए जवान है !
सरित , सरोवर भरे हिलोरें ,
लहरों का सत्कार है !!
नई फसल है , नई आस है ,
पट जायेगें कर्ज़ भी !
रोज कसौटी श्रम चढ़ता है ,
घटते ना हैं मर्ज भी !
उम्मीदें परवान चढ़ी हैं ,
ऐसी चली बयार है !!
माटी रोली , माटी चंदन ,
धरती टेके माथ हैं !
माँ ममता से जो दे देती ,
गह लेते ये हाथ हैं !
माँ की सेवा धर्म हमारा ,
अधरों पर मनुहार है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )