अद्भुत डाक्टर
मैं रोज शाम को सब्जी लेने जाता, तो घड़ी भरके लिए रेलवे के पुल पर ठिठक जाता। पूरे सफेद बालों वाले एक वृद्ध वहीं दिख जाते । कहीं दूर कुछ सोचते से..अक्सर मुझे लगता कि वो मुझे ही देख रहे हैं …मुस्करा रहे हैं…मैं लपक कर उनके पास पहुँचता ….वही शांत मुस्कुराहट उनके चेहरे पर होती..धीरे से हाथ मिलाते और जीने उतर जाते…..एक दिनचर्या बन गयी थी मेरी- उनकी । न मेरा कुछ पूछने का मन होता था, न उनकी कुछ बताने की इच्छा होती थी। एक अनकहा संबंध बँध गया था हम दोनो के बीच में। आँखे पहचानती रहतीं.. अपनेपन का भाव बांधे रहता.. हम दोनो को! एक दिन सहसा मेरी बायीं तरफ कुछ भारी सा लगा और मुझे होश नहीं कि क्या हुआ । आँख खुली तो पत्नी बगल में बैठी साग काट रही थी …मैं प्रश्नवाचक दृष्टि से लगभग चौंक सा गया ?
“होश आ गया इनको …”पत्नी चहकी।
“प्रबल …प्राची आओ..पापा….”
पत्नी रोये जा रही थी। मैं चकित! उठने का प्रयास किया तो लगा बहुत कमजोरी है …
मैंने पूछा ,”क्या हुआ मुझे ?”
पत्नी बताने लगी…
“आपको हार्ट अटैक पड़ा था.. हम लोगो को कुछ पता नहीं चला, आप एम्बुलेंस से अस्पताल पहुँच चुके थे.. तब हम लोगो को सूचना मिली। जब तक हम लोग पहुॅंचें, अस्पताल में सारी तैयारी हो गई थी, एकाद हस्ताक्षर लेकर डा. गौतम ने आपके दिल की बाईपास सर्जरी कर दी थी …बिना पैसे लिये ….”
मैं हतप्रभ “कौन डा. गौतम ?”
“अरे वही सफेद बालों वाले …”
मेरी पत्नी बोली ।
“वो वहीं थे, पुल पर.. जब आप बेहोश हुए..”
“ओह ! वो बुजुर्ग से इंसान, जिनके बारे में मैं बताया करता था? ”
“हाँ वो ही..वो बोल नहीं पाते हैं …उन्होने ही सारी कागजी कार्यवाही पूरी करके हम लोगों के पास अपने चपरासी को भेजा था …”
“लेकिन वो तो मुझे जानते तक नहीं थे?” मैं अब तक असमंजस में था..
“हाँ! मैं भी नहीं जानती थी, पर वो हम सबको बहुत अच्छी तरह जानते थे, उन्होने लिखकर बताया था। 10 वर्ष पूर्व उन पर किसी ने झूठा केस दर्ज करवा दिया था, कार एक्सीडेंट का और आपने उनके पक्ष में गवाह बन कर बयान दिया था कि वो निर्दोष हैं, नहीं तो उनको जेल हो जाती ..वो बहुत शुक्रगुजार लग रहे थे आपके”। पत्नी ने बहुत आत्मीयता से बताया।
मेरी आँखों के सामने अचानक वर्षों पुराना वो घटनाक्रम.. ज्यों का त्यों प्रकट हो गया …।
“मारो.. मारो.. मारो ..लगभग 35 लोगों की भीड़ दौड़ी ….
आवाज सुनकर मैं रूका और भीड़ को चीरते हुए अंदर घुसा….एक लड़की रो-रोकर एक व्यक्ति पर एक्सीडेंट का आरोप लगाये जा रही थी, सब लोग फुसफुसाने लगे कि “ये लड़की किसी गिरोह से जुड़ी है, किसी की भी गाड़ी के सामने आ जाती है और रोज किसी न किसी को फॅंसा कर पैसे ऐंठती है…”तभी मेरी नजऱ उस आदमी पर पड़ी, वो फूट-फूट कर रोए जा रहा था, किसी आदमी को इतना ज्यादा रोते हुए मैंने पहली बार देखा था …मेरा मोहल्ला था, सब भलीभांति मुझे पहचानते थे, मैं जोर से, लगभग दहाड़ते हुए बोला …”खबरदार कोई हाथ न लगाये इनको”
और लड़की को डपटते हुए आगे बढ़ा….
“एक तो शरीफ आदमी को परेशान कर रही हो, ऊपर से रो रही हो..मैंने पूरी घटना देखी है …पूरे रानीगंज को पता है, मैं कौन हूँ, चलो भागो यहाँ से….और आप सब! चलिए जाइये अपने-अपने काम पर”।
मेरी आवाज की सच्चाई थी या रौब, भीड़ धीरे-धीरे छ्ट गयी ।
मैंने उनको उठाया और चिपका लिया….काँपते और रोते हुए उस आदमी ने मेरा हाथ कस के पकड़ लिया ..मैंने कार का दरवाजा खोला और कहा ..
“आप निश्चिंत होकर जाइये, मेरे योग्य कभी कोई अन्य सेवा हो तो अवश्य बताइयेगा”। आगे बहुत कुछ हुआ कोर्ट-कचहरी, मैंने गवाही भी दी..ओह ! तो इसीलिए वो आँखे हमें इतनी जानी पहचानी सी लगती थी …।
मन ही मन मैं कृतज्ञता से भर उठा। एक छोटे से कार्य या मदद की कीमत मुझे किस रूप में मिली..मैं सोचता रह गया बस।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ