अदम गोंडवी
“अदम गोंडवी” वो नाम जो सुनते ही कुछ ऐसे शब्दों का समूह हमारे दिमाग में नाचने लगता है जो प्रतिकार का है, बिरोध का है । जिसे सुनने से ही धमनियों में रक्त तेज गति से चलने लगती है।
“ग़ज़ल को ले चलो अब गांव के दिलकश नज़ारों में
मुसलसल फन का दम घुटता है इन अदबी इदारो में”
उनका भी आज जन्म दिन है ;
जन्म = 22 अक्तूबर 1947
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के आटा गांव में जन्मे रामनाथ सिंह उर्फ अदम गोंडवी ने यूँ तो महज़ माध्यमिक स्कूल तक ही शिक्षा पाई थी। लेकिन अपनी रचनाओं से वो जनता की वो आवाज बने जिन्हें जब तक शोषित और शोषण समाज में बिद्यमान रहेगा लोग उनकी रचनाओं को भूल नही पाएंगे।
जंहा भी ‘’हाशिए के लोगों’’ के ऊपर अन्याय और अनाचार होगा लोग उस का उपाय ‘अदम’ के नज्मों में ढूढ़ते हुए उसे अपना हथियार बनाते रहेंगे। उन नज्मों में खुद को ढूँढना भी एक क्रिया है जो सतत चलता रहेगा।
“सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद हैं
दिल पर रखकर हाथ कहिये देश क्या आजाद है ?”
अदम = अभाव
नाम का असर होता है शायद लोगों के व्यक्तित्व पर, ‘अभाव’ उनके नाम का मतलब शायद यही है, लेकिन उनके शब्दों में कभी आभाव नही रहा, भावना में कोई आभाव नही दिखा। शायद इसी अपने नाम के कारण वो ‘अभाव ग्रस्त’ लोगों की पीड़ा को समझ पाते होंगे, तभी तो उसे शब्दों में ढालते वक्त शेर की गुर्राहट लिए हुंकार भरती जनता सुनाई परती है। सरकार और सरकारी व्यवस्था पर उनका शब्दों का प्रहार मन में अदम्य साहस भर देती है।
“भूख के एहसास को शेरो-सुखन तक ले चलो,
या अदब को मुफलिसो के अंजुमन तक ले चलो
शबनमी होठों की गर्मी दे ना पायेगी सुकून,
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को ”
…जय हो