अतुल्य नायक ——- राष्ट्रकवि दिनकर
20वीं शताब्दी के मध्य की एक तेजस्वी विभूति
हिंदी साहित्य में देश प्रेम के कविताओं के लिए जाने- जाने वाले रामधारी सिंह दिनकर को किसी परिचय की जरूरत नहीं है।
रामधारी सिंह दिनकर को उनकी देश प्रेम और कविताओं के लिए एक जनकवि के साथ-साथ राष्ट्रकवि के नाम से भी जाना जाता है. आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी मिलने के बाद तक उनकी लिखी कविताएं, उनके लिखे लेख, निबंध, लोगों में आजादी के प्रति, संस्कृति के प्रति जोश जगाने वाले रहे।
एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेकर राष्ट्रकवि दिनकर की उपाधि, राज्यसभा सदस्य, पद्मभूषण पुरस्कार जैसी तमाम उपलब्धियां उन्होंने अपने व्यक्तित्व और विद्वता के बल पर अर्जित किए।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ को 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया। वे 12 सालों तक लगातार तीन बार राज्यसभा सांसद रहे। वहीं, 1965 से 1971 तक दिनकर भारत सरकार के हिंदी सलाहकार भी रहे। वे अल्लामा इकबाल और रवींद्रनाथ टैगोर को अपना प्रेरणा स्रोत मानते थे। दिनकर ने टैगोर की रचनाओं का बांग्ला से हिंदी में अनुवाद भी किया।
आपातकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण ने रामलीला मैदान में लाखों लोगों की एक सभा में रामधारी सिंह दिनकर की कविता का पाठ कर जनता का मन मोह लिया शीर्षक था ‘सिंहासन खाली करो जनता आती है’
जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें लगातार राज्यसभा सदस्य बनाया, जब देश के हित की बात आई. तो उसी संसद में जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ भी उन्होंने काव्य पाठ करने से परहेज नहीं किया. इस वजह से जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया था, जिसका कभी भी मलाल उनके चेहरे पर देखने को नहीं मिला।
अपनी लेखनी के जरिए दिनकर हमेशा अमर रहेंगे. द्वापर युग की ऐतिहासिक घटना महाभारत पर आधारित उनके प्रबन्ध काव्य ‘कुरुक्षेत्र’ को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 74वां स्थान दिया गया।
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जन्म दिवस पर शत-शत नमन एवं चरण वंदन