अतीत की गलियों में
आज फिर अतीत की गलियों में लौट रहे हैं हम,।
बिना बुलाए बिना गिले शिकवे पहुंच रहे है हम।
वहीं पुरानी कॉलोनी जहां लोगों से कुछ कुछ पहचान भी है।
गलियां चेहरा भूल चुकी हैं किन्तु कुछ थोड़ा पहचानती भी है
। मोड़ वाली सब्जी की दुकान वाली अम्माजी अबी शायद गुज़र चुकी हैं।
उसके पोते से पहचान बनाने पहुंच रहे है हम।
नुक्कड़ वाला जनरल स्टोर वाला जिससे जरुरत का सामान ले आते थे ।
छोटे परसी को घूरकर पहचाने की कोशिश में सक्षम।
आज फिर–
आज फिर लौट रहे उस घर जिसकी पहली ईंट से रिश्ता कायम है हमारा
आज गुजरेंगे उस गली से जहां मधुबनी पर खाते थे चाऊमीन डोसा,
शंकर के छोले भटूरे ,टाउन हॉल की चाट
उस कोने वाली दुकान जिस पर रखी लड़कियों की प्यारी सी पोशाकें
।रेखा चल निश्छल लौट चल वहां बस प्यार ही प्यार हो सतत्।