अति विशिष्ट जन उपचार …..4 ( V V I P Treatment )
कहते हैं राम से बड़ा राम का नाम उसी प्रकार साहब से बड़ा अर्दली का काम ।
मान लीजिए कभी साहब को ओ पी डी में दिखाने आना पड़ जाए तो वह साथ में अर्दली को लेकर आते हैं जो उन्हें चिकित्सक से उनका परिचय करवाता है , उस समय काय चिकित्सक इस दुविधा में होता है कि
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पांय , बलिहारी उन गुरुन की जिन गोविंद दियो मिलाय । इस दोहे में कही आदर्श बात का अनुसरण करते हुए डॉ. पन्त जी मन करता है कि वह पहले उस अर्दली का अभिवादन करें जिसने उन्हें साहब को मिलवाया ।
माना कि मुग़ल-ए-आज़म की वह प्रथा जिसमें कि जब बादशाह आलम जलवा अफ़रोज़ होते थे तो एक खाबिंद उनके इस्तकबाल में कसीदे पढ़ते हुए उनके आने की बाआवाज़े बुलंद दरबार में घोषणा करता था , कुछ इसी प्रकार जब कोई साहब ओपीडी में दिखाने आते थे तो कभी-कभी डबल अर्दली साथ लाते थे एक जो उनके आने के पूर्व उनके आने की घोषणा करता था तथा दूसरा साथ में आता था जो साहब के ओपीडी में प्रवेश करने पर उनका डॉ. पन्त जी से साक्षात्कार कराता था ।
साहब की यह अदा अर्दली पर इतनी ज्यादा निर्भर रहती है कि एक बार एक अर्दली ने जो मुझे बताया उस पर कदाचित में पहली बार में विश्वास नहीं कर सका । मैं आज भी मानता हूं कि उसके द्वारा बताई गई यह बात कपोल कल्पित एवं झूठी भी हो सकती है पर यह बात जो उसके द्वारा मुझे पता चली थी कि
‘ एक बार एक नए-नए चिर कुवांरे बड़े साहब जब नौकरी पर आए और उन्हें किसी से प्यार हो गया और उनके इस प्रेम संदेश को पहुंचाने के लिए और अपनी प्रेमिका को आई लव यू कहने के लिए भी उन्होंने उस अर्दली का इस्तेमाल किया था । जिसने जाकर साहब को उनकी प्रेमिका के समक्ष ले जा उनकी तारीफ करते हुए उनका संदेश दिया था ।’
पंत जी अक्सर सोचा करते थे कि हम चिकित्सक किसी मरीज को देखकर बिना उसे छुए उसकी चाल ढाल , हाव भाव से न केवल उसके व्यक्तित्व की गरिमा को पहचान सकते हैं वरन उसकी बीमारी , उसकी आर्थिक स्थिति जैसे उसकी जेब में कितने पैसे होंगे , कितना पैसा वह अपने उपचार और जांचों में खर्च कर सकता है का भी अंदाजा लगाने में भी कुशल अनुभवी होते हैं । अतः पन्त जी ऐसे अधिकारियों के प्रति विशेष श्रद्धा भाव एवं सम्मान रखते थे जो सीधे उनके पास आकर उन्हें अपना परिचय दे कर अपनी तकलीफ बताते थे ।
एक बार पंत जी ने एक पुराने अर्दली से जो अनेक बार साहब बदल बदल कर उनके पास बड़े साहब लोगों को दिखाने आया करता था से पूछा क्या तुम्हारा स्थानांतरण नहीं होता है ?
इस पर वह बहुत गमगीन हो कर बोला हमारा क्या है डॉक्टर साहब , हमारे तो जब जब बड़े साहब का स्थानांतरण होता है तो उनकी जगह जो सहाब आते हैं उनका स्वभाव अलग होता है और वही हमारे लिए स्थानांतरण के समान होता है । हमारे लिए हमारे साहब का बदल जाना ही हमारा स्थानांतरण है। जब तक हम लोग एक बड़े साहब के स्वभाव एवं उनकी कार्यप्रणाली के अनुसार अपने को ढालते हैं तब तक कोई दूसरे साहब आ कर कार्यभार ग्रहण कर लेते हैं फिर हम लोग उनके अनुसार ढलने में लग जाते हैं यही हमारा स्थानांतरण होता है ।
कुल मिलाकर एक अर्दली का व्यवहार अपने साहब की कुल अकड़ का मूर्तिमान स्वरूप होता है । पंत जी एक ऐसे ही एक अकड़ू अर्दली से बहुत दुखी थे ।
हर समय वह ऐंठ में रहता था और आते ही उन पर रौब जमाता हुआ अपने को दिखाकर चल देता था । एक बार एक अत्यंत व्यस्त ओपीडी के दिवस पर वह फिर से हमेशा की तरह मरीजों की लाइन तोड़कर भीतर आया और मरीजों की ओर मुखातिब होते हुए और डॉक्टर पन्त जी को सुनाते हुए बोला
कोठी से आया हूं ।और आकर मरीज़ के स्टूल पर बैठ गया ।
इसके पश्चात जो कुछ भी अप्रत्याशित रूप से घटा वह पंत जी के इतने वर्षों के चिकित्सीय कार्यकाल में कभी नहीं हुआ था ।
पंत जी को भीड़ में से कुछ लोगों का कोलाहल सुनाई दिया वह विभिन्न स्वरों में अलग-अलग बोल रहे थे कोई कह रहा था
देख लो , देख लो साहब पहले इस कुत्ते को देख लो ।
पहले इस ह***** , म**** ………. को ही पहले देख लो । हम तो आम गरीब आदमी हैं हमारा क्या ?
भीड़ का यह रुख़ देखकर पंत जी ने उसे बड़े आराम से देखना शुरू किया और पहले उसका सामान्य परीक्षण किया फिर ब्लड प्रेशर नापा फिर आगे पीछे आला लगाकर देखा और करीब 5 मिनट तक उसकी धड़कन सुनी । बीच बीच में आले मैं सुनाई देती हुई उसकी धड़कनों को चीरता हुआ लाइन लगे मरीज़ों के उसपर झरने की तरह झड़ते आशीर्वचनों स्वरूप लानतों , उलाहनों और कोसने का कोलाहल उन्हें सुनाई दे रहा था ।
उस समय पन्त जी को इस बात का एहसास था कि इस हल्ला मचाती इस मरीजों की कतार के सिरे पर लगे रोगी उसने गंभीर रोगी नहीं है जितने कि इस लाइन की दुम पर अति गंभीर रोगी अपनी बारी के आने के इंतजार में अंतिम छोर पर बाट जोह रहे होंगे और अपनी बीमार अशक्त अवस्था के कारण इस भीड़ को चीर कर पहले उनके पास तक नहीं पहुंच पा रहे होंगे ।