अति विशिष्ट जन उपचार …..3
एक बार और डॉक्टर पंत जी को बड़े साहब की कोठी पर इलाज के लिए नियमानुसार बुलवाया गया । जब वे तमाम बाधाएं पार करते हुए बैठक में पहुंचे तो उस दिन सर और मैडम जी दोनों ही बीमार थे। सर जी को ज़ुखाम था और मैडम जी को चक्कर आ रहे थे । पंत जी के उनका परीक्षण कर उन्हें दवाइयां लेने की सलाह दे कर हर बार की तरह अपना पर्चा उनके आशुलिपिक को देकर और जैसा कि प्रायः होता है उनके कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों ने उन्हें दवाइयां उपलब्ध करा दी होंगी यह सोचते हुए अस्पताल आ गए।
इस बात को जब 3 दिन बीत गए तो शिष्टाचार वश पंत जी ने सोचा कि जाकर उन्हें एक बार फिर से देख आएं और उनका हाल-चाल ले लें ।
इस बार दोनों विशिष्ट दंपत्ति बड़े हर्ष के साथ डॉक्टर पन्त जी से मिले एवं चाय के साथ उनका स्वागत किया । बातों बातों में डॉक्टर पन्त जी के पूछने पर उन लोगों ने घर के अंदर से अपनी दवाइयां मंगवा कर दिखाईं और बताया कि वे उन्हें किस प्रकार खा रहे थे ।
पन्त जी को यह देख कर बहुत विस्मय हुआ कि
वे दवाइयां भी सही थीं ,
उनको लेने का तरीका भी सही था
और दोनों मरीजों को आराम भी हुआ था ।
बस फर्क सिर्फ इतना था की सर जी के लिफाफे की दवाइयां मैडम जी खा रही थीं और मैडम जी की दवाइयां सर जी ले रहे थे । डॉक्टर पंत ने उन्हें जब इस वास्तविकता से रहस्योदघाटन करते हुए उनका परिचय कराया तो वे दोनों एक दूसरे की ओर देखकर हंसने लगे और उन्होंने कहा कुछ भी हो डॉक्टर साहब आप की दवाई हमें माफिक आतीं है और हम पहले से बेहतर महसूस कर रहे हैं ।
पंत जी सोचने लगे अंत भला तो सब भला जब मरीज को ही आराम है तो उन्हें क्या करना है । बस वे उनकी चाय पी कर उन दवाइयों के लेने का तरीका उन्हें एक बार समझाते हुए तथा उनका आभार ग्रहण करते हुए फिर अस्पताल आ गये ।