अटकी है खजूर में जान (हास्य गीत)
अटकी है खजूर में जान (हास्य गीत)
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आसमान से टपके , अटकी है खजूर में जान
(1)
हुआ लॉकडाउन तो सबसे ज्यादा हम हर्षाए
सोचा घर में छुट्टी का अच्छा अवसर यह पाए
भावी खतरों से चुनौतियों से हम थे अनजान
(2)
पहले दिन ही सभी नौकरों को छुट्टी दे डाली
हमें कहाँ था पता मुसीबत अपने आप बुला ली
अब अच्छा है नारा अपना “मेरी झाड़ू मेरी शान”
( 3)
पोछा रगड़-रगड़ कर दिन में दोनों समय लगाते
रोज क्लास लगती है बर्तन कैसे माँजे जाते
गहरी है चकला-बेलन से आज जान पहचान
(4)
सोच रहा हूँ खुले लॉकडाउन खूँटे से छूटूँ
मजे चैन से कुर्सी पर सोकर दफ्तर में लूटूँ
गृहकार्यों से मुक्ति आज है बस मन का अरमान
आसमान से टपके ,अटकी है खजूर में जान
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451