अज्ञानी मन @ कविता
मैंने सोचा
सबसे अधिक संकटों से वास्ता मेरा पड़ा है
पर यहां हर शहर कस्बों गांव गलियों में
सुखों से आदमी अनजान खड़ा है
शहर जिसमें चमक दमक आवो हवा का है शमा
तथाकथित सुख सुविधाओं में नर् मादा है रमा
लेकिन शहरी ये आज भी
इंसानियत से सुनसान पड़ा है
समाज में छाई विकृति
मानव की प्रकृति को
बदलने को आतुर अज्ञानी आज
मेरा मन अडा है
@ओम प्रकाश मीना